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*दादू पड़दा पलक का, येता अन्तर होइ ।*
*दादू विरही राम बिन, क्यों कर जीवै सोइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विरह का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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(६)श्रीबंकिम और भक्तियोग । ईश्वरप्रेम
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बंकिम - (श्रीरामकृष्ण के प्रति) - महाराज, भक्ति का क्या उपाय है ?
श्रीरामकृष्ण – व्याकुलता । लड़का जिस प्रकार माँ के लिए, माँ को न देखकर बेचैन होकर रोता है, उसी प्रकार व्याकुल होकर ईश्वर के लिए रोने से ईश्वर को प्राप्त तक किया जाता है ।
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"अरुणोदय होने पर पूर्व दिशा लाल हो जाती है, उस समय समझा जाता है कि सूर्योदय मे अब अधिक विलम्ब नहीं है । उसी प्रकार यदि किसी का प्राण ईश्वर के लिए व्याकुल देखा जाय, तो भलीभांति समझा जा सकता है कि इस व्यक्ति का ईश्वर प्राप्ति में अधिक विलम्ब नहीं है ।
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"एक व्यक्ति ने गुरु से पूछा था, 'महाराज, ईश्वर को कैसे प्राप्त करूं, बता दीजिये ।' गुरु ने कहा, ‘आओ, मैं तुम्हें बता देता हूँ ।' यह कहकर वे उसे एक तालाब के किनारे ले गये । दोनों जल में उतर पड़े । इतने में ही एकाएक गुरु ने शिष्य का सिर पकड़कर उसे जल में डुबो दिया और कुछ देर पानी में डुबाकर रखा । फिर थोड़ी देर बाद उसे छोड़ दिया ।
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शिष्य सिर उठाकर खड़ा हो गया । गुरु ने पूछा, 'कहो, तुम्हें कैसा लग रहा था ?' शिष्य ने कहा, 'ऐसा लग रहा था कि अभी प्राण जाते ही हैं, प्राण बेचैन हो रहे थे ।' तब गुरु ने कहा, 'ईश्वर के लिए जब प्राण इसी प्रकार बेचैन होंगे, तभी जानो कि अब उनके साक्षात्कार में विलम्ब नहीं है ।'
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"तुमसे कहता हूँ, ऊपर ऊपर बहने से क्या होगा ? जरा गोता लगाओ । गहरे जल के नीचे रत्न है, जल के ऊपर हाथ पैर पटकने से क्या होगा ? यथार्थ मणि भारी होता है, वह जल पर तैरता नहीं; वह जल के नीचे डूबा हुआ रहता है । असली मणि प्राप्त करना हो तो जल के भीतर गोता लगाना पड़ेगा ।"
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बंकिम - महाराज, क्या करूँ, पीठ पर काग बँधी हुई है । (सभी हँसे) वह डूबने नहीं देती ।
श्रीरामकृष्ण - उनका स्मरण करने से सभी पाप कट जाते हैं । उनके नाम से काल का फन्दा कट जाता है । गोता लगाना होगा, नहीं तो रत्न नहीं मिलेगा । एक गाना सुनो –
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(भावार्थ) "रे मेरे मन, रूप के समुद्र में गोता लगा । ओ रे, तल, अतल, पाताल खोजने पर प्रेमरूपी धन को पायेगा । ढूँढो ढूँढो, ढूँढ़ने पर हृदय के बीच में वृन्दावन पाओगे और हृदय में सदाज्ञान का दीपक जलता रहेगा । कबीर कहते हैं, सुन सुन, गुरु के श्रीचरणों का चिन्तन कर ।"
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श्रीरामकृष्ण ने अपने देवदुर्लभ मधुर कण्ठ से इस गाने को गाया । सभा के सभी लोग आकृष्ट होकर एक-मन से गाना सुनने लगे । गाना समाप्त होने पर फिर वार्तालाप शुरू हुआ ।
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श्रीरामकृष्ण - (बंकिम के प्रति) - कोई कोई गोता लगाना नहीं चाहते । वे कहते हैं, 'ईश्वर ईश्वर करके ज्यादती करके अन्त में क्या पागल हो जाऊँ ?' जो लोग ईश्वर के प्रेम में मस्त हैं, उन्हें कहते हैं 'बौरा गये हैं', परन्तु ये सब लोग इस बात को नहीं समझते कि सच्चिदानन्द अमृत का समुद्र है ...
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"मैंने नरेन्द्र से पूछा था, 'मान लो कि एक बर्तन रस है, और तू मक्खी बना है, तो तू कहाँ पर बैठकर रस पीयेगा ?' नरेन्द्र ने कहा, 'किनारे पर बैठकर मुँह बढ़ाकर पीऊँगा ।' मैंने कहा, क्यों ? बीच में जाकर डूबकर पीने में क्या हर्ज है ?' नरेन्द्र ने कहा, 'फिर तो रस में डूबकर मर जाऊँगा ।'
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तब मैंने कहा, 'भैया, सच्चिदानन्द-रस ऐसा नहीं है, यह रस अमृत रस है । इसमें डूबने से मनुष्य मरता नहीं, अमर हो जाता है ।'
"तभी कह रहा हूँ, 'गोता लगाओ । कोई भय नहीं है । डूबने से अमर हो जाओगे ।"
अब बंकिम ने श्रीरामकृष्ण को प्रणाम किया । वे बिदा लेंगे ।
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बंकिम - महाराज, मुझे आपने जितना बेवकूफ समझा है, उतना नहीं हूँ । एक प्रार्थना है, दया करके कुटिया में एक बार चरणधूलि - ।
श्रीरामकृष्ण - ठीक तो है, ईश्वर की इच्छा ।
बंकिम - वहाँ पर भी देखेंगे, भक्त हैं ।
श्रीरामकृष्ण - (हँसते हुए) - कैसा जी ? कैसे सब भक्त है वहाँ पर ? जिन्होंने गोपाल गोपाल, केशव केशव कहा था, उनकी तरह हैं क्या ? - (सभी हँसे ।)
(क्रमशः)

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