शनिवार, 11 जून 2022

*श्री रज्जबवाणी पद ~ २५*

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*दादू जग दिखलावै बावरी, षोडश करै श्रृंगार ।*
*तहँ न सँवारे आपको, जहँ भीतर भरतार ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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२५. भेष से हानि । कहरवा
संतों स्वांग मारिये लेखै१,
झूठा रोष करै मत कोई, काम उजड़ता२ देखै ॥टेक॥
दाढ़ी मूछ केश करि कानें३, कामिनी रूप बनावैं ।
नारी ह्वे नारी को भुगतै, यूं अपराध४ कमावैं ॥१॥
काया रासि५ राखिबे कारण, गुरु सहना६ दे छाये७ ।
सो देखत दश बाट लुटाई, सबल८ सजा इस पाये ॥२॥
काठों चढि माटी के लिये, कहु किन विषय कमाई९ ।
मृतक स्वांग भांडि१० इन भक्तों, रज्जब भक्ति गँवाई ॥३॥२५॥
सच्चाई बिना भेष से हानि होती है, यह कह रहे हैं -
✦ संतों ! भेष तो नाश करने के लिये१ ही है । यह सुन कर कोई झूठ रोष न करे, भेष से काम बिगड़ता२ ही देखा है ।
✦ दाढी, मूछ के केश दूर३ करा करके नारी का रूप बनाते हैं, नारी बनकर नारी को भोगते हैं । इस प्रकार पाप४ कमाते हैं ।
✦ शरीर को ठीक५ संयम से रखने के लिये गुरु ने कामादि के वेग को सहन६ करने का उपदेश देकर इन पर भेष सजाये७ थे । सो उस शरीर को देखते देखते दश इन्द्रिय रूप दश मार्गो से लूटा देते हैं । इस व्यवहार से ये महान८ दंड पायेंगे ।
✦ काष्ठ पर चढ कर अर्थात खड़ाऊ पहनकर और मिट्टी के पात्र लेकर भी कहो, कौन विषय भोगता९ है ? मुरदा काष्ठ की अरथी पर चढता है और उसके पात्र मिट्टी के ही होते हैं इन भक्तों ने तो मुरदे के भेष को बदनाम करके भक्ति१० को खो दिया है ।
(क्रमशः)

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