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*दादू माया कारण मूंड मुंडाया, यहु तौ योग न होई ।*
*पारब्रह्म सूं परिचय नांहीं, कपट न सीझै कोई ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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३१ भेषधारियों का कपट । त्रिताल
अवधू१ कपट कला इक भारी, यूं सदगुरु साखि विचारी ।
षट् दर्शन२ दीरघ ठग बैठे, काल रूप व्यापारी ॥टेक॥
स्वांगी सबै स्वांग दे लीन्हे, वय३ बिच नेजाधारी४ ।
ऐसी शाठि५ भई सब ऊपरि, सौंज६ शिरोमणी हारी७ ॥१॥
बाँध कियै वश बैल बिचारे१३, तप तीरथ क्वैलारी ।
ऐसे धर्या काल ह्वै बैठ्या, लांबी पाश पसारी ॥२॥
कुल बाँधे कृत्रिम८ सौं कसि कसि, मन वच कर्म विचारी ।
स्वर्ग नर्क अरु मध्य मही पर, यूं ठग करी ठगारी९ ॥३॥
सुर नर नाथ दिये गूण्यूं१० तली, पीठ्यों छई११ सहारी१२ ।
जन रज्जब जो इनसे मुकते, तिन ऊपरि बलिहारी ॥४॥३१॥
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भेषधारियों की कपट कला को दिखा रहे हैं -
✦ साधों१ ! भेष धारियों में दूसरो को फँसाने की एक महान कपट कला है । ऐसा ही सदगुरु की साक्षी से हमने विचार किया है । जोगी, जंगम, सेवड़े, बौद्ध, सन्यासी, शेष ये छ: प्रकार के भेषधारी२ पृथ्वी पर महा ठग बैठे हैं और काल रूप होकर ही व्यवहार करते हैं ।
✦ भेषधारियों ने सबको अपने कंठी आदि भेष चिन्ह देकर ग्रहण कर रक्खा है और इस मानव जीवन की अवस्था३ में भाला४-धारण करके आने वाले शत्रु के समान हैं । जो इनके अधीन हुये हैं, उन सब पर ऐसी शठता५ का व्यवहार हुआ है कि उनने सर्वश्रेष्ठ मनुष्य शरीर रूप सामग्री६ को इनके दुराग्रह में आकर हाथ से खो७ दिया है ।
✦ जैसे किसान बैल के गले में क्वैलारी(काष्ट खंड) बाँध कर उसे अपने अधीन करता है, वैसै ही बेचारे१३ भोले लोगों को व्रतादि रूप तप ओर तीर्थो में बाँधकर ऐसे पकड़ रक्खा है, मानो लम्बी पाश फैलाकर काल ही बैठा हो । मन वचन कर्म और विचार सबको फैलाकर काल ही बैठा है ।
✦ मन, वचन, कर्म और विचार से सबको अपने बनावटी८ कंठी आदि तथा प्रथा आदि बन्धनों से खूब खैंच खैंच कर बाँध रक्खा है । स्वर्ग नरक और मध्य के लोक पृथ्वी पर इस प्रकार ठगों ने ठगी९ करी है ।
✦ पीठ पर सहायता१२ की भावना छाकर११ अर्थात सहायता की स्वीकृति देकर नरनाथ, सुरनाथ और गुणियों१० तक को अपने कपट गुणों के निचे दबाया है । जो इनसे मुक्त होकर प्रभु परायण हुये हैं उन पर तो हम बलिहारी जाते हैं ।
(क्रमशः)

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