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*सेवक सिरजनहार का, साहिब का बंदा ।*
*दादू सेवा बंदगी, दूजा क्या धंधा ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साँच का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*परिच्छेद १०४*
*प्रह्लाद-चरित्र का अभिनय-दर्शन*
*(१)समाधि में*
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श्रीरामकृष्ण आज स्टार थिएटर में प्रह्लाद-चरित्र का अभिनय देखने आये हैं । साथ में राम मास्टर, नारायण आदि हैं । तब स्टार थिएटर बिडन स्ट्रीट में था । बाद में इसी रंगमंच पर एमरेल्ड थिएटर और क्लासिक थिएटर का अभिनय होता था ।
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आज रविवार है । १४ दिसम्बर, १८८४ । श्रीरामकृष्ण एक बाक्स में उत्तर की ओर मुँह किये हुए बैठे हैं । रंगमंच रोशनी से जगमगा रहा है । श्रीरामकृष्ण के पास बाबूराम, मास्टर और नारायण बैठे हैं । गिरीश आये हैं, अभी अभिनय का आरम्भ नहीं हुआ है । श्रीरामकृष्ण गिरीश से बातचीत कर रहे हैं ।
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श्रीरामकृष्ण - (हँसकर) - वाह, तुमने तो यह सब बहुत अच्छा लिखा है ।
गिरीश – महाराज, धारणा कहाँ ? सिर्फ लिखता गया हूँ ।
श्रीरामकृष्ण - नहीं, तुम्हें धारणा है । उसी दिन तो मैंने तुमसे कहा था, भीतर भक्ति हुए बिना कोई चित्र नहीं खींच सकता ।
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"धारणा भी इसके लिए चाहिए । केशव के यहाँ मैं नववृन्दावन नाटक देखने गया था । देखा एक डिप्टी आठ सौ रुपया महीना पाता है । सब लोगों ने कहा, बड़ा पण्डित है; परन्तु वह गोद में एक बच्चा लिए हैरान हो रहा था ।
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क्या किया जाय जिससे बच्च अच्छी जगह बैठे, अच्छी तरह नाटक देखे, इसी के लिए वह व्याकुल हो रहा था । इधर ईश्वरी बातें हो रही थीं, उसका जी नहीं लगता था । बच्चा बार बार पूछ रहा था, 'बाबूजी, यह क्या है ? वह क्या है ?' वह भी बच्चे के साथ उलझा हुआ था। उसने बस पुस्तकें पढ़ी हैं, धारणा नहीं हुई है ।"
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गिरीश - दिल में आता है अब विएटर-सिएटर क्या करूँ ?
श्रीरामकृष्ण - नहीं, नहीं, इसका रहना जरूरी है, इससे लोकशिक्षा होगी ।
अभिनय होने लगा । प्रह्लाद पाठशाला में पढ़ने के लिए आये हैं । प्रह्लाद को देखकर श्रीरामकृष्ण 'प्रह्लाद प्रह्लाद' कहते हुए एकदम समाधिमग्न हो गये ।
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प्रह्लाद को हाथी के पैरों के नीचे देखकर श्रीरामकृष्ण रो रहे हैं । अग्निकुण्ड में जब वे फेंक दिये गये तब भी श्रीरामकृष्ण के आँसू बह चले । गोलोक में लक्ष्मीनारायण बैठे हैं | प्रह्लाद के लिए नारायण सोच रहे हैं ! यह दृश्य देखकर श्रीरामकृष्ण फिर समाधिमग्न हो गये ।
(क्रमशः)
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