बुधवार, 8 जून 2022

*श्री रज्जबवाणी पद ~ २४*

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*आत्मा अंतर सदा निरंतर,*
*ताहरी बापजी भक्ति दीजे ।*
*कहै दादू हिवे कौड़ी दत आपे,*
*तुम्ह बिना ते अम्हें नहीं लीजे ॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद. १७८)
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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२४ भक्ति याचना । कहरवा
भक्ति भावे राम भक्ति भावे,
होहि कृपालु तो प्राणी पावे ।
स्वर्ग पाताल मध्य लोक मांगू नहीं,
और दत्त१ दान नहि अंग आवे ॥टेक॥
भक्ति भव हरण भगवान वश भक्ति के,
सिद्धि नव निधि ॠद्धि भक्ति मांहीं ।
सो देहु दाता करतार करूणा मई,
दास के आश उर और नांही ॥१॥
भक्ति में मुक्ति पदारथ सब सहित,
भक्ति भगवत नहिं भेद भीना२ ।
परम उदार पसाव३ सो कीजिये,
दान दीर्ध पावै सो दीना६ ॥२॥
भक्ति भंडार भीतर भरी सकल निधि,
तुम बिना कौन यहु मौज४ होई ।
रज्जब रंक को रहम५ करि कीजिये,
और ऐसा ना दातार कोई ॥३॥२४॥
भगवान से भक्ति मांग रहे हैं –
✦ हे राम ! मैं मन वचन से कहता हूँ, मुझे भक्ति ही प्रिय लगती है । आप कृपा करें तो ही प्राणी भक्ति प्राप्त कर सकता है । मैं आपसे स्वर्ग पाताल और मध्य के लोक नहीं माँगता और यदि कोई दिया१ हुआ दान हो तो मेरे शरीर के लिये उसका फल प्राप्त करने की इच्छा भी मेरे हृदय में नहीं आती अर्थात नहीं प्रकट होती है ।
✦ भक्ति जन्मादि संसार को हरने वाली है, भगवान स्वयं भी भक्ति के वश में हैं । सिद्धि, ॠद्धि नवनिधि भक्ति में ही हैं । हे करुणा मय करतार दाता ! वह भी मुझे दे, मुझ दास के हृदय में ओर कोई आशा नहीं है ।
✦ भक्ति में सब पदार्थो के सहित मुक्ति है । भक्ति और भगवान में भेद भिन्नता२ नहीं है । परम उदार प्रभो ! उसी भक्ति के देने की कृपा३ कीजिये । यह महा दान मुझ दीन६ को प्राप्त हो ।
✦ भक्ति रूप भंडार में सब निधि हैं किंतु आपके बिना वह आनन्द४ अन्य किससे प्राप्त हो सकता है ? अर्थात नहीं । मुझ रंक को कृपा५ करके भक्ति दीजिये । आपके बिना ऐसा दातार और कोई भी नहीं है । अत: आप ही दया करें ।
(क्रमशः)

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