रविवार, 19 जून 2022

*श्री रज्जबवाणी पद ~ २८*

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*दादू नाना भेष बनाइ कर, आपा देख दिखाइ ।*
*दादू दूजा दूर कर, साहिब सौं ल्यो लाइ ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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२८. भेष भ्रम मय । कहरवा
संतों भेष भरम कछु नांहीं ।
छ: दर्शन छयानवें पाखंड, भूल प्रपंच मांहीं ॥टेक॥
स्वांग सलिल१ संपूरण दीसै, मृग तृष्णा मन धावै ।
नाम नीर ता में कछु नांही, दौड़ि दौड़ि दुख पावै ॥१॥
शीतकोट२ माहीं छिप बैठे, कहो वोत३ क्या होई ।
तैसे विधि दर्शन४ में पैठें, काल न छोड़्या कोई ॥२॥
सकल चित्र५ चिरमी की पावक, मन मरकट सब सेवैं ।
जन रज्जब जाड़ा६ नहिं उतरै, उर आंधे जिव७ देवैं ॥३॥२८॥
भेष तो भ्रम रूप ही है यह कह रहे हैं -
✦ संतों ! भेष तो भ्रम रूप ही है, इसमें सत्यता कुछ नहीं है । जोगी, जंगम, सेवड़े, बौद्ध, सन्यासी, शेष ये छ भेषधारी और अठारह बौद्ध, अठारह जंगम, चौबीस जैन, दश सन्यासी, बारह जोगी, चौदह शेख, ये छयानवे पाखंड आदि सभी भेषधारी प्रपंच में भूले हुये हैं, अर्थात फँस रहे हैं ।
✦ सभी भेष मृग तृष्णा के जल१ के समान दिखते हैं, मृग तृष्णा में जल कुछ भी नहीं होता फिर भी मृग दौड़ दौड़ कर दुख पाते हैं । वैसै ही भेष से नाम चिंतन कुछ भी नहीं होता फिर भी लोगों का मन भेष की ओर दौड़ता ही है ।
✦ गंधर्व-नगर२(भ्रम नगर) में छिप कर बैठने से कहो, क्या शाँती३ मिलेगी ? वह सूर्य के कुछ ही चढ़ने पर नष्ट हो जायेगा । वैसे ही भेष४ धारियों में प्रवेश करने से काल ने किसी को नहीं छोड़ा है ।
✦ सब भेष चिन्ह५ चिरमी की अग्नि के समान हैं जैसे चिरमी की राशि एकत्र करके वानर उससे तपते हैं, तब उससे शीत६ दूर नहीं होता । फिर भी वानर मन में भ्रम से उसे घेर कर बैठे रहते हैं । वैसे ही भेष चिन्हों से कुछ भी भला नहीं होता, फिर भी हृदय के अंधे प्राणी भेषों में मन७ लगाते हैं ।
(क्रमशः)

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