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*सब घट आतम एक विचारे,*
*राम सनेही प्राण हमारे ॥*
*दादू साची राम सगाई,*
*ऐसा भाव हमारे भाई ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पद्यांश. २८३)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*संत भले बड़ भाग मिले मम,*
*सेव करूं नित यूं सुख लीजै ।*
*ले सुखपाल बिठाय चले पुर,*
*भूप कहै कछु आयसु कीजे ॥*
*संतन सेव करो नित मेवन,*
*आवत जो जन आदर दीजे।*
*स्वांग बनाय रु आवत वे ठग,*
*आप कहै बड़ भक्त लहीजे ॥२४२॥*
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जयदेवजी के उक्त प्रकार वचन सुनकर और दर्शन करके राजा विचारने लगा। यह तो कोई महान् प्रभाव युक्त संत हैं, मेरे बड़े भाग्य से ही मुझे मिले हैं। अब इन की नित्य सेवा करके आज के समान सदा ही सुख प्राप्त करूँगा।
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ऐसा विचार करके जयदेवजी को हाथों में लेकर पालकी में बैठाया फिर अपने पर को चल दिये। घर में आकर हाथ पैरों का इलाज कराकर अच्छा करा दिया फिर एक दिन राजा ने प्रार्थना की—कुछ आज्ञा दीजिये।
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जयदेव जी ने कहा-नित्य फल, मेवा आदि से संतों की सेवा करो और जो भी जन आवे उनका आदर करो। जयदेव जी के उपदेश के अनुसार राजा संतों की खूब सेवा करने लगा।
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तब कभी वे ठग जिनने जयदेव जी के हाथ पैर काटे थे, साधु भेष बनाकर आये। उनको देखकर जयदेवजी अति हर्ष से बोले- आइये आइये। और पास के लोगों से कहने लगे, ये सब बड़े भक्त हैं, भाग्य से ही प्राप्त हुये हैं। इनको प्रणाम करो।
(क्रमशः)

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