गुरुवार, 23 जून 2022

*श्रीकृष्ण को अर्पित*

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*दादू सांई को संभालतां, कोटि विघ्न टल जांहि ।*
*राई मन बैसंदरा, केते काठ जलांहि ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ निष्काम पतिव्रता का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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निशि - उनकी (भवानी पाठक की) कन्या हूँ, वे मेरे पिता हैं । उन्होंने भी एक तरह से मेरा विवाह कर दिया है ।
प्रफुल्ल - एक तरह से, इसके क्या मानी ?
निशि - मैंने अपना सब कुछ श्रीकृष्ण को अर्पित किया है ।
प्रफुल्ल - वह कैसे ?
निशि - मेरा रूप, यौवन और प्राण ।
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प्रफुल्ल - क्या वही तुम्हारे स्वामी हैं ?
निशि - हाँ, क्योंकि जिनका मुझ पर पूर्ण अधिकार हैं, वे ही मेरे स्वामी हैं ।
प्रफुल्ल ने एक लम्बी साँस छोड़कर कहा, "मैं नहीं कह सकूँगी । कभी तुमने पति का मुख नहीं देखा, इसीलिए कह रही हो । पति को अगर देखा होता तो कभी श्रीकृष्ण पर तुम्हारा मन न जाता ।"
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मूर्ख व्रजेश्वर (प्रफुल्ल का पति) यह न जानता था कि उसकी स्त्री उससे इतना प्रेम करती है ।
निशि ने कहा, "श्रीकृष्ण पर सब का मन लग सकता है, क्योंकि उनका रूप अनन्त है, यौवन अनन्त है, ऐश्वर्य अनन्त है ।"
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यह युवती भवानी पाठक की शिष्या थी, निरक्षर प्रफुल्ल उसकी बातों का उत्तर न दे सकी । केवल हिन्दू-समाजधर्म के प्रणेतागण उत्तर जानते थे । मैं जानता हूँ, ईश्वर अनन्त हैं, परन्तु अनन्त को इस छोटे से हृदय-पिञ्जर में हम रख नहीं सकते, सान्त को रख सकते हैं ।
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इसीलिए अनन्त ईश्वर हिन्दुओं के हृदय-पिञ्जर में सान्त श्रीकृष्ण के रूप में हैं । पति और भी अच्छी तरह सान्त है । इसीलिए प्रेम के पवित्र होने पर, पति ईश्वर के पथ पर चढ़ने का प्रथम सोपान है । यही कारण है कि पति ही हिन्दू स्त्रियों का देवता है । इस जगह दूसरे समाज हिन्दू समाज से निकृष्ट हैं ।
प्रफुल्ल मूर्खा थी, वह कुछ समझ न सकी । उसने कहा, "बहन, मैं इतनी बातें नहीं समझ सकती । तुम्हारा नाम क्या है, तुमने तो अब तक नहीं बताया ।"
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निशि बोली, "भवानी पाठक ने मेरा नाम निशि रखा है । मैं दिवा की बहन निशि हूँ । दिवा को एक दिन तुमसे मिलने के लिए लाऊँगी; परन्तु मैं जो कह रही थी, सुनो । एकमात्र ईश्वर हमारे स्वामी हैं । स्त्रियों का पति ही देवता है । श्रीकृष्ण सब के देवता हैं । क्यों बहन, दो देवता फिर क्यों रहें ? इस छोटे से जी में जो जरा भक्ति है, उसके दो टुकड़े कर डालने पर फिर कितना बच रहता है ?"
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प्रफुल्ल - अरी चल ! स्त्रियों की भक्ति का भी कहीं अन्त है ?
निशि – स्त्रियों के प्यार का तो अन्त नहीं है, परन्तु भक्ति और चीज है, प्यार और चीज ।
मास्टर - भवानी पाठक प्रफुल्ल से साधना कराने लगे ।
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"पहले साल भवानी पाठक प्रफुल्ल के घर किसी पुरुष को न जाने देते थे, और न घर के बाहर किसी पुरुष से उसे मिलने ही देते थे । दूसरे साल मिलने-जुलने में इतनी रोक-टोक न रही; परन्तु उसके यहाँ किसी पुरुष को न जाने देते थे । फिर तीसरे साल, जब प्रफुल्ल ने सिर घुटाया, तब भवानी पाठक अपने चुने हुए चेलों को लेकर उसके पास जाया करते थे - प्रफुल्ल सिर घुटाये आँखें नीची करके शास्त्रीय चर्चा किया करती थी ।
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"फिर प्रफुल्ल की शिक्षा का आरम्भ हुआ । वह व्याकरण समाप्त कर चुकी; रघुवंश, कुमार, नैषध, शाकुन्तल पढ़ चुकी । कुछ सांख्य, कुछ वेदान्त और कुछ न्याय भी उसने पढ़ा ।"
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श्रीरामकृष्ण - इसका मतलब समझे ? बिना पढ़े ज्ञान नहीं होता । जिसने लिखा है, वैसे आदमियों का यही मत है । वे सोचते हैं, पहले पढ़ना-लिखना है, फिर ईश्वर है । यदि ईश्वर को समझना है तो पढ़ना-लिखना अत्यावश्यक है ।
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परन्तु अगर मुझे यदु मल्लिक से मिलना है, तो उसके कितने मकान हैं, कितने रुपये हैं, कितने का कम्पनी का कागज है, क्या यह सब पहले जानने की आवश्यकता है ? मुझे इतनी खबरों का क्या काम ? स्तव या स्तुति करके किसी भी तरह से हो अथवा दरवान के धक्के ही सहकर, किसी तरह घर के भीतर घुसकर यदु मल्लिक से मिलना चाहिए ।
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और अगर रुपया-पैसा और ऐश्वर्य के जानने की इच्छा हो, तो यदु मल्लिक से पूछने ही से काम सिद्ध हो जाता है । बहुत सहज में ही मतलब निकल जाता है । पहले राम हैं, फिर राम का ऐश्वर्य यह संसार । इसलिए वाल्मीकी ने 'मरा' जाना था । 'म' अर्थात् ईश्वर और 'रा' अर्थात् संसार - उनका ऐश्वर्य ।
(क्रमशः)

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