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*साहिब सौं साचा नहीं, यहु मन झूठा होइ ।*
*दादू झूठे बहुत हैं, साचा विरला कोइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ सांच का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*भूप बुलाय कहै तुम भाग हि,*
*आत बड़े जन सेव करीजै ।*
*मन्दिर में पधराय रिझावत,*
*होत सुभोग डरै वपु छीजै ॥*
*आयसु माँगत हैं दिन ही दिन,*
*आप कहैं इनको द्रव्य दीजै ।*
*माल दियो बहु लार करे भृत,*
*द्यौ पहुँचाय सु वैन भनीजै ॥२४३॥*
जयदेव जी ने राजा को बुलाकर कहा- "हे राजन् तुम्हारे भाग्य से ही ये महान् संत पधारे हैं, इनकी सेवा करो ।"
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राजा ने जयदेव जी की आज्ञा से उन सब का आसन राज-महल में लगवा दिया और बहुत से मनुष्यों की सेवा में लगाकर उनको प्रसन्न करने लगा तथा नित्य नवीन भोग पदार्थ उनको अर्पण करने लगा; किन्तु वे इस शंका से बहुत डर रहे थे कि जयदेव जी हम सबको मरवा डालेंगे । इससे उन सबके शरीर सूखे जाते थे ।
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वे ठग प्रतिदिन जाने की आज्ञा माँगते थे । किन्तु भक्त राजा जाने नहीं देता था । जब ठग लोग जाने के लिये अति शीघ्रता करने लगे तब जयदेव जो ने राजा को कहा—“इनको धन दो ।" जयदेव जी की आज्ञा से राजा ने-रत्न, स्वर्ण मुद्रा आदि बहुत प्रकार का धन देकर उनको विदा किया ।
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धन को ले जाने और रक्षा करने के लिये बहुत से राज सेवक साथ करके कहा-इनको अच्छी प्रकार इनके आश्रम पर पहुँचा कर आना, बीच से ही मत आ जाना ।
(क्रमशः)
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