मंगलवार, 21 जून 2022

*श्री रज्जबवाणी पद ~ २९*

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*जोगी जंगम सेवड़े, बौद्ध सन्यासी शेख ।*
*षट् दर्शन दादू राम बिन, सबै कपट के भेष ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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२९. भेष पाखंड । कहरवा
दर्शन साँच जु सांई दीया, आदू१ आप उदर में कीया ।
पिछला सब पाखंड पसारा, ऐसे सदगुरु कहै हमारा ॥टेक॥
सुन्नत झूठ जु बाहर काटी, कपट जनेऊ हाथैं बाँटी ।
मन मुख मुद्रा मिथ्या सींगी, भरम भगौहा२ धींगाधींगी३ ॥१॥
कपट कला जैनहु जुग ठाटी४, फाड़ि कान फोकट५ मुख पाटी ।
प्रपंच माला तिलक जु बानै६, यहां ही आय देह पर ठानै७ ॥२॥
षट् दर्शन८ खोटे कलि कीन्हे, अलियल९ आय इला१० पर लीन्हे ।
जन रज्जब सो माने नांहीं, पहली छाप नहीं इन मांहीं ॥३॥२९॥
भेष केवल पाखंड है, यह कह रहे हैं -
✦ सच्चा भेष तो प्रभु ने दिया है, जो पेट में पहले१ स्वयं ने ही बना दिया है, वही सच्चा है । पीछे जो बनाया जाता है वह तो पाखंड का ही विस्तार है । हमारे गुरु ऐसा ही कहते हैं ।
✦ बाहर आने पर जो काट कर की जाती है वह सुन्नत झूठी है । हाथों से बांट कर पहनी जाती है, यह जनेऊ भी कपट रूप ही है । मुद्रा भी मनमुर्खता का चिह्न है । सींगी भी मिथ्या ही है । कान फाड़ना भी व्यर्थ५ ही है । ये भेष के उपद्रव३ कायरता२ है ।
✦ जैनों ने भी कपट की कला रची४ है जो मुख पाटी से बाँधी है । जो भी माला तिलकादि भेष६ चिन्ह हैं वे सब प्रपंच रूप ही हैं । यहाँ पृथ्वी पर आकर ही शरीर पर बनाते७ हैं ।
✦ कलियुग में ये छ: प्रकार के भेष८ बुरे ही बनाये हैं । पृथ्वी पर आकर अड़ियल६(हठी) लोग भी इन्हें धारण करते हैं । मैं तो इन हठी भेष धारियों को नहीं मानता, कारण - इनमें प्रभु की दी हुई पहली छाप अर्थात भेष नहीं है । इनने उसे बदल दिया है ।
(क्रमशः)

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