🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#श्री०रज्जबवाणी* 🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*राखणहारा राख तूँ, यहु मन मेरा राखि ।*
*तुम बिन दूजा को नहीं, साधू बोलैं साखि ॥*
===================
*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
२१ मन ग्रिहार्थ विनय । एकताल
राम राय१ अइया२ मन अपराधी ।
जोय जोय बात जीव छिटकावे, सोई उलटि इण३ नाधी४ ॥टेक॥
जासौं कहूँ पलक मत परसे, सोई फेरि इण खाधी५ ।
निशि दिन निकट रहत निज निरखत, मन की घात६ न लाधी७ ॥१॥
यहु मन जोध जीव पर बैठा, पंच बाण शर साँधी ।
माने नाँहिं शब्द सुन तेरा, काढि रह्या यूं काँधी८ ॥२॥
छल बल बहुत ज्ञान गुन उर में, और महा मन स्वादी९ ।
रज्जब कहै राम सुन चुगली१०, कृपा करैं मन बाँधी ॥३॥
मन को प्रभु स्वरूप में स्थिर करने के लिये प्रभु से विनय कर रहे हैं –
✦ हे विश्व के राजा१ राम ! यह२ मन बड़ा अपराधी है । जिस जिस बात को जीव छोड़ता है यह३ लौटकर उसी उसे संबंध४ करता है ।
✦ मैं जिसके लिये कहता हूं कि - इसे एक क्षण भी मत छू किंतु यह उसी को खाता५ है । रात्रि दिन पास रहकर नित्य देखते हुये भी मन की चालाकी६ को मैं नहीं पा सका७ हूँ ।
✦ यह मन रूप योद्धा पंच ज्ञानेन्द्रिय रूप बाणों को जीव पर साँध बैठा है । आपके शब्द सुन कर भी नहीं मानता, मारने के लिये कंधा८ निकाल रहा है ।
✦ इसमें बहुत छल बल हैं । हृदय में ज्ञान और दैवीगुण रखने पर भी यह महा रसिक९ बना रहता है । मैं आपके आगे मन की निन्दा१० कर रहा हूँ । आप कृपा करके मन को अपने स्वरूप के चिंतन में बाँध दीजिये ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें