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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२४. सम्रथाई कौ अंग ~ २५/२८*
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जे बोलै सो सब सुंणैं, तन मन सबद प्रमांण ।
कहि जगजीवन रांमजी, सब विधि जाणैं जांण२ ॥२५॥
(२ जांण-ज्ञानी)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो हम कहते हैं वे प्रभु सब सुनते हैं । हमारे तन मन और देह इस बात के प्रमाण हैं । वे पूरणकाम प्रभु हर प्रकार से अन्तर्यामी हैं ।
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जे बोलै सो सब सुणैं, घटि घट का जाप ।
कहि जगजीवन नांम सुंणि, रीझै आपै आप ॥२६॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हम जो कुछ बोलते हैं वे सब सुनते हैं । हर ह्रदय का स्मरण सुनते हैं । वे प्रभु नाम स्मरण सुन भक्तों पर प्रसन्न होते हैं ।
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अनंत चकवै अनंत घरि, सकल लोक विस्तार ।
कहि जगजीवन अनंत पुरिष को, अंत न आवै पार ॥२७॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि उन प्रभु के अनेक चाहनेवाले हैं । जहाँ वे निवसते हैं । उधका विस्तार सकल लोक तक है । उन अनंत पुरुष का कोइ पार नहीं पाता है ।
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निराकार हरि निरंजन, अंजन मंजन रांम ।
कहि जगजीवन भै भ्रम भंजन, प्रगत गुपत सब ठांम ॥२८॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु निराकार है निरंजन है सब में व्याप्त है । वे भय भ्रम को दूर करनेवाले सभी स्थान पर प्रगट भी हैं और गुप्त भी हैं ।
(क्रमशः)
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