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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२४. सम्रथाई कौ अंग ~ ३३/३६*
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तुम थैं प्रगटै सकल है, उतपति लोक अनंत ।
कहि जगजीवन अकल५ का, कोइ न पावै अंत ॥३३॥
{५. अकल-कला(विभाग)} {रहित(अविनाशी)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे प्रभु जी आपसे ही सब प्रकटते हैं कितने ही लोकों की उत्पति होती है । संत कहते हैं कि उन अविनाशी परमात्मा का कोइ पार नहीं पासकता है ।
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अबिगत आग्या अधर धरि, अंबु प्रवेस करंत ।
कहि जगजीवन अकल हरि, प्रेरक सकल भरंत ॥३४॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि सकल चराचर प्रभु आज्ञा से ही चलता है । संत कहते हैं कि वे प्रभु सबके प्रेरक हैं व पूर्ति करते हैं । उनकी आज्ञा से ही जल धरती पर आता है ।
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कहि*जगजीवन रांमजी, पहुंच्या१ ते प्रमांण ।
अणपहुंच्या पहुंच्या कहै, ते क्यौं कहिये जांण ॥३५॥
(१.पहुंच्या-ज्ञानप्राप्त)
(*-*. तु०-श्रीदादूवाणी-
दादू जे पहुँचे ते कहि गये, उन की एकै बात ।
सब साधों का एक मत, ए बिच के बारह बाट ॥१३/१५९॥)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जिन्होंने प्रभु को पा लिया है वे प्रमाणिक तौर पर इसकी पुष्टि करते हैं और जो नहीं जान पाये वे ही अपने आप को ज्ञानी बता कर नाना प्रकार के कल्पित वर्णन करते हैं ।
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कहि जगजीवन रांमजी, अगम अगोचर नांम ।
क्रिपा तुम्हारी जन लहै, पावै निहचल ठांम२ ॥३६॥
{२. निहचल ठांम-निश्चल स्थान(निर्वाण पद)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि आप अगम हैं अगोचर हैं । कितने ही नाम हैं आपके । जो जन आपकी कृपा पा लेते हैं वे निर्वाण पद पा आवागमन के चक्कर से छूट जाते हैं ।
(क्रमशः)

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