गुरुवार, 30 जून 2022

*श्री रज्जबवाणी पद ~ ३३*

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*दादू जिन कंकर पत्थर सेविया,*
*सो अपना मूल गँवाइ ।*
*अलख देव अंतर बसै, क्या दूजी जगह जाइ ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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३३ प्रतिमा । त्रिताल
संतों प्राण१ पषाण न माने,
परम पुरुष बिन पाखंड सारा, तहां आसति२ जाने ॥टेक॥
सरिता शैल३ सगे सुत बंधू४, सेये५ मुक्ति न द्यावैं६ ।
सो स्वामी संपुट७ में बाँधे, घर घर मोल बिकावैं ॥१॥
जाका इष्ट अवनि नहिं छाड़ै, सेवक स्वर्ग न जाई ।
या में फेर सार कछु नांही, भरम न भूलो भाई ॥२॥
कांधे कंठ हमारे चालै, जोख्यूं८ पावक पाणी ।
रज्जब घड़े सुनार सिलावट, सो सकलाई९ जाणी ॥३॥३३॥
पत्थर आदि की मूर्तियों पर अपना विचार प्रकट कर रहे हैं -
✦ संतों ! हमारा जीवात्मा१ पाषाण पूजा में संतोष नहीं मानता, परम पुरुष प्रभु के बिना सभी पाखंड हैं । उस पाखंड से हम मुक्ति२ होती हुई नहीं जानते ।
✦ हे भाई४, नर्मदा और गंडकी नदी के सम्बन्धी अर्थात उन नदियों से निकले हुये पर्वत३ के पुत्र पत्थरों की सेवा५ करने से वे मुक्ति नहीं देते६ । वह पत्थरादि का बनाया हुआ स्वामी तो डिब्बा७ में रखकर घर घर मोल बेचा जाता है ।
✦ जिसका इष्ट देव पृथ्वी के एक स्थान को छोड़ कर दूसरे स्थान पर नहीं जा सकता । तब उसका सेवक भी स्वर्ग में नहीं जा सकता । इसमें परिवर्तन करने की कुछ बात ही नहीं है, यह सार रूप विचार है । हे भाई ? इस भ्रम जाल में भूल कर भी मत पड़ो ।
✦ जो हमारे कंध और कंठ में बैठा कर चलता है । (छोटी धातु मुर्ति कंठ में पहनते हैं, सवारी निकालते हैं तब बड़ी मूर्ति को कंधे पर रखते हैं) और जिसकी अग्नि तथा जल में पड़ने से हानि८ होने की शंका रहती है, जो सुनार और सिलावट का घड़ा हुआ है यही उसकी शक्ति९ है, सो हमने जान ली है, अत: हमारा मन प्रतिमा को प्रभु नहीं मानता ।
(क्रमशः)

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