शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

*भूमि फटी रु समाय गये ठग*

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*दादू जब ही साधु सताइये, तब ही ऊँघ पलट ।*
*आकाश धँसै, धरती खिसै, तीनों लोक गरक ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ निन्दा का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*भूमि फटी रु समाय गये ठग,*
*देखि भगे चल स्वामि पै आये ।*
*बात सुनी तब कांपि उठ्यो तन,*
*हाथ रु पाँव मले निकसाये ॥*
*दोय अचंभ कहे नृप पै भृत्य,*
*स्वामिन पास गयो सुख पाये ।*
*शीश धरयो पग बूझत आनि रु,*
*बात कहो सत मो मन भाये ॥२४५॥*
जयदेवजी ने क्षमा और साधुता का परिचय दिया किन्तु दुष्टों ने तो फिर भी निन्दा ही की । यद्यपि भूमिका नाम 'सर्वसहा' है तथापि इन संत द्रोहियों को नहीं सह सकी । जितने स्थान में ठग थे, उतनी भूमि फट गई और वे दुष्ट उसमें समाकर रसातल को चले गये । राजसेवक ने यह देखकर दौड़ते हुये जयदेव जी के पास आकर उक्त बात सुनायी ।
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सुनते ही जयदेवजी का शरीर कांप उठा और वे चिन्ता करते हुये हाथ पैर मलने लगे तब उनके हाथ पैर जो कटे हुये थे निकल कर अच्छे हो गये ।
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राजसेवकों ने पीछे राजा के पास जाकर दुष्टों का भूमि में समा जाना और जयदेव जी के हाथ पैरों का ज्यों का त्यों आ जाना सुनकर राजा को अति सुख प्राप्त हुआ ।
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उसने शीघ्र जयदेवजी के पास आकर तथा उनके चरणों में अपना मस्तक धरकर पूछा, हे भगवन् मेरे मन के भावते आपके हाथ-पैर कैसे अच्छे हुये और वे लोग भूमि में कैसे समाये ?
(क्रमशः)

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