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*अवधू ! कामधेनु गहि राखी,*
*वश कीन्हीं तब अमृत स्रवै, आगै चार न नाखी ॥टेक॥*
*पोषंतां पहली उठ गरजै, पीछें हाथ न आवै ।*
*भूखी भलै दूध नित दूणा, यों या धेनु दुहावै ॥१॥*
*ज्यों ज्यों खीण पड़ै त्यों दूझै, मुक्ता मेल्यां मारै ।*
*घाटा रोक घेर घर आणैं, बांधी कारज सारै ॥२॥*
*सहजैं बांधी कदे न छूटै, कर्म बंधन छुट जाई ।*
*काटै कर्म सहज सौं बाँधै, सहजैं रहै समाई ॥३॥*
*छिन छिन मांहि मनोरथ पूरै, दिन दिन होइ अनन्दा ।*
*दादू सोई देखतां पावै, कलि अजरावर कंदा ॥४॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद. ७३)
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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४० बुद्धि गो । त्रिताल
अवधू१ सुरही२ शक्ति संभाली३ ।
दह४ दिशि विघ्न बाध वसुधा में, मींच मया५ करि टाली ॥टेक॥
नौखंड मांहि फिरै चरणों ही, सात समुद्र जल पाना ।
तब लग गाय गरज६ नहिं सारै७, समझी ग्वाल सयाना ॥१॥
स्वार्थ सांड समागम होतां, आधीन उदर आधाना८ ।
व्याये बच्छ सु पांच पचीसों, राग द्वेष सब ठाना९ ॥२॥
ल्यो१० की लाठी हेत११ हाथ ले, चेतन पग१२ रखवारी ।
ऐसे तंबा१३ त्रासि पासि कर, कारज सारै१४ भारी ॥३॥
अगम उछेरी१५ उलटि अकाश हि, नाम नाज सु चराई ।
वायक१६ वृक्ष छांह सुन शीतल, संतोष सरोवर पाई ॥४॥
कामधेनु के काम न व्यापै, दूध दर्श निज थाना१७ ।
जन रज्जब धनि धेनु धणी१८ सो, पीवै अमृत पाना ॥५॥४०॥
बुद्धि रूप गाय का परिचय दे रहे हैं -
✦ हे साधक१ ! बुद्धि रूप गाय२ की शक्ति के स्मरण३ कर, उसमें महान शक्ति है । दशों४ दिशाओं में जो विघ्न रूप बाघ हैं, उनसे होने वाली बुद्धि रूप गाय की भ्रष्ट होना रूप मृत्यु को भगवान की कृपा५ प्राप्त करके हटा ।
✦ यह बुद्धि गाय पृथ्वी के नौओं खंडों में अपने वासना रूप चरणों से ही घूमती है अर्थात वासानानुसार सबका विचार करती है और अपने आशा रूप मुख से सप्त समुद्रों का जल पान कर जाती है किंतु चतुर साधक रूप ग्वाल ! तब तक यह तेरी आवश्यकता६ नहीं पूरी७ करेगी ।
✦ जब तक स्वार्थ रूप सांड का समागम इससे होता रहेगा । कारण - उसके अधीन होकर यह अपने आशयरूप पेट में गर्भाधारण८ करके, पंच विषयों की आशा और पच्चीस प्रकृति रूप वत्सों को जन्म देगी तथा रागद्वेष करेगी९ ।
✦ अत: नाम चिन्तन वृत्ति१० रूप दंडा प्रभु प्रेम-रूप११ हाथ में लेकर चेतन स्वरूप१२ में स्थिर करना रूप रखवाली इसकी निरंतर रख ऐसे इस बुद्धि-गाय१३ के गले में त्रास रूप पाश डाल डाल कर रक्खेगा तो यह मुक्ति रूप महान कार्य को सिद्ध१४ कर देगी ।
✦ दुर्गम ज्ञान मार्ग द्वारा इसे संसार से बदल कर ब्रह्मरूप आकाश की ओर घेर१५ और भलीभांति नाम चिन्तन रूप नाज चरा, संत वचन१६ वृक्ष की छाया की श्रवण करना रूप शीतलता में बैठा, संतोष रूप सरोवर का शांति रूप जल पिला ।
✦ ऐसे रखने से मुक्ति रूप कामना को भी पूर्ण करने वाली बुद्धि रूप कामधेनु पर काम अपना प्रभाव नहीं डाल सकेगा और यह अपने विचार रूप स्तनों१७ से ब्रह्म साक्षात्कार रूप दूध देगी । इस प्रकार जो बुद्धि-गाय का स्वामी१८ उसका ब्रह्म साक्षात्कार रूप दुग्धामृत पान करता है वह धन्य है ।
(क्रमशः)

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