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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.२१८)*
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*२१८. उपदेश चेतावनी । राज मृगांक ताल*
*रे मन ! गोविन्द गाइ रे गाइ, जन्म अविरथा जाइ रे जाइ ॥टेक॥*
*ऐसा जनम न बारम्बारा, तातैं जप ले राम पियारा ॥१॥*
*यहु तन ऐसा बहुरि न पावै, तातैं गोविन्द काहे न गावै ॥२॥*
*बहुरि न पावै मानुष देही, तातैं कर ले राम सनेही ॥३॥*
*अब के दादू किया निहाला, गाइ निरंजन दीनदयाला ॥४॥*
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भा•दी०-रे मनो ! निरन्तरं गोविन्दं भज गोविन्दं भज । अन्यथा तव जन्म व्यर्थमेव प्रतिक्षणं यायात् । नहि पुनः पुनरीदृशं मानवं जन्म लभते कोऽपि । अतस्त्वं स्वप्रियं राममाश्रयीकुरु । पुनः पुनः संबोधनेऽपि त्वं किमर्थं राम नाम न स्मरसि । तद् गुणगानं कुरुष्व । भजनद्वारा श्रीरामस्वप्रियं मत्वा जन्मसाफल्यं कुरु । येन पुन: पुनर्जन्म न भवेत् । तुभ्यं दुर्लभं मानुष्यं जन्म दत्वा भगवता त्वमनुगृही तोऽसि । नहि भगवत्कृपां विनेदृशं जन्म लभ्यते । अतो गोविन्दं भज तमेवं सततं स्मर ।
श्रीमद्भागवते उक्तम्-
लम्वा सुदुर्लममिदं बहु संभवान्ते
मानुष्य मर्थदमनित्यमपीहधीरः ।
तूर्णंयतेत नपतेदनुमृत्यु याव---
निन्निश्रेयसाय विषयः खलु सर्वत: स्यात् ।
उक्तञ्च सर्ववेदान्तसिद्धान्तसारसंग्रह-
लब्ध्वा सुदुर्लभतरं नरजन्मजन्तुस्तत्रापि पौरुषमत: सदसद्विवेकम् ।
संप्राप्य चैहिकसुखाभिरतो यदि स्याद्धिक्तस्यजन्म कुमतेः पुरुषाधमस्य ।
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रे मन ! तू निरन्तर गोविन्द को भज । अन्यथा तेरा नर जन्म प्रतिक्षण व्यर्थ में ही चला जायगा । कोई भी व्यक्ति ऐसा दुर्लभ मनुष्य शरीर बार बार प्राप्त नहीं कर सकता । अतः तू तेरे प्यारे राम को भज । बार बार में मैं तेरे को समझाता हूं । फिर भी तू क्यों नहीं समझता और राम को क्यूं नहीं भजता ? उनके नाम को बार बार गावो ।
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और उनको भज कर अपने जीवन को सफल बनालो । जिससे संसार में बार बार जन्म न हो । तेरे को मनुष्य देकर भगवान् ने बडा ही अनुग्रह किया है । उस की कृपा के बिना ऐसा नर जन्म नहीं मिलता । अतः गोविन्द को भजो ।
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श्रीमद्भागवत में लिखा है कि –
यह मनुष्य शरीर बड़ा ही दुर्लभ है । क्योंकि अनेक जन्म जन्मान्तरों के बाद मिला है । धर्म अर्थ काम मोक्ष का देने वाला है । लेकिन क्षणभंगुर और अनित्य है । अतः बुद्धिमान् मनुष्य को चाहिये कि जब तक मृत्यु के मुख में नहीं जाता उससे पहले ही मुक्ति के लिये यत्न कर लो । क्योंकि विषय भोग तो सभी योनियों में मिलता रहता है ।
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सर्ववेदान्तसिद्धान्तसारसंग्रह में भी यही कहा है कि –
दुर्लभ मनुष्य शरीर प्राप्त करके जिसमें सद् असत् का विचार किया जा सकता है । उसमें भगवान् को न भजकर केवल ऐन्द्रिय सुखों के भोगों में ही लगा रहता है तो वह मनुष्य कुमति और पुरुषों में अधम पुरुष है । उसके जन्म को धिक्कार है ।
(क्रमशः)
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