सोमवार, 18 जुलाई 2022

*प्रीति तिलोचन की मन भाई*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
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*दादू कर्त्ता करै तो निमष मैं, कीड़ी कुंजर होइ ।*
*कुंजर तैं कीड़ी करै, मेट सकै नहिं कोइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*दीन हो राम रहे जन के गृह,*
*प्रीति तिलोचन की मन भाई।*
*बात अज्ञात लखै मन की,*
*घर को सब काज करे सुखदाई ॥*
*एक समै कहुं दासि के दूषणन,*
*पीसन पोवन की पन आई।*
*राघो कहै निज रूप निरन्तर,*
*हो गये सेवक को समझाई॥२३३॥*
भक्त त्रिलोचन की भक्ति भगवान् को अति प्रिय लगी, तभी तो आप दीन नौकर का रूप बनाकर भक्त के घर पर रहे थे। आप भक्त आदि के मन की बात अज्ञात अर्थात् बिना कहे ही जान जाते थे। 
एक समय कहीं भक्त की धर्म पत्नी के मन में नौकर के लिये पीसना और भोजन की बात दूषण रूप से आ गई अर्थात् नौकर बहुत खाता है, यह बात मन में दोषरूप से स्थिर हो गयीं। तब आप अपना एकदेशी नौकर का रूप त्याग कर सर्वत्र निरंतर रहने वाले रूप में स्थित हो गये। फिर वियोग से भक्त को दुःख हुआ तब भक्ति की महिमा समझाकर कहा- वह तो मैं ही था तुम चिन्ता मत करो ॥२३३॥
(क्रमशः)

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