सोमवार, 18 जुलाई 2022

*२४. सम्रथाई कौ अंग ~ ८९/९२*

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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२४. सम्रथाई कौ अंग ~ ८९/९२*
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खलक३ मांहि रीता४ भरै, अबिगत रांम अगाध ।
कहि जगजीवन भरिया रीता, यहु गति समझै साध ॥८९॥
{३. खलक-दुनियाँ(जगत्)} {४. रीता-रिक्त(खाली)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि संसार में प्रभु स्वयं ही खाली को भरते हैं व भरे को खाली करते हैं । यह प्रभु की अपरम्पार लीला है । इसे साधुजन ही समझते हैं ।
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कहि जगजीवन सब करै, हेत पिछांणैं दास ।
आप बिठावै आप उठावै, आप जगावै सास ॥९०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु सब करते हैं । वे दास जनों का भला समझते हैं । अतः वे स्वयं ही उठाते हैं, बैठाते हैं, व आप ही श्वास जगाते हैं ।
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कहि जगजीवन सब करै, करत न जांणै कोइ ।
अधर धर्या मांहि रांमजी, करता करै सु होइ ॥९१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु सब कुछ करते हैं पर वे कैसे करते हैं इस रहस्य को कोइ नहीं जानता है इस आधार रहित धरती को कैसे टिका रखा है और इस पर जो भी करते हैं वह ही होता है ।
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कहि* जगजीवन अंबु थैं,असम को करतार ।
असम अंबु छिन एक मैं, करत न लागै बार* ॥९२॥
{*-*. उस सिरजनहार में ऐसी विलक्षण शक्ति है कि वह एक क्षण में पत्थर को जल (द्रव) एवं जल को पत्थर(कठिन) बना देता है ॥९२॥}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु एक क्षण में जल को पत्थर व पत्थर को जल कर देते हैं वे सर्व समर्थ हैं ।
(क्रमशः)

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