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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.२१४)*
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*२१४. अनन्य शरण । झूमरा*
*तुम्हारे नाम लाग हरि ! जीवन मेरा ।*
*मेरे साधन सकल नाम निज तेरा ॥टेक॥*
*दान पुन्य तप तीरथ मेरे, केवल नाम तुम्हारा ।*
*यह सब मेरे सेवा पूजा, ऐसा बरत हमारा ॥१॥*
*यह सब मेरे वेद पुराणा, सुचि संयम है सोई ।*
*ज्ञान ध्यान येही सब मेरे, और न दूजा कोई ॥२॥*
*काम क्रोध काया वश करना, ये सब मेरे नामा ।*
*मुक्ता गुप्ता परगट कहिये, मेरे केवल रामा ॥३॥*
*तारण तिरण नांव निज तेरा, तुमही एक आधारा ।*
*दादू अंग एक रस लागा, नांव गहै भव पारा ॥४॥*
हे प्रभो ! आपके नाम का स्मरण ही मेरा जीवन है । मेरे सारे साधन जो आपका “सत्यराम” यह नाम है वह ही है । दान पुण्य तप तीर्थाटन आदि, मैं तो आपके नाम को ही मानता हूं । सेवा पूजा भी मैं आपके नाम का स्मरण ही मानता हूं ऐसा मेरा व्रत है ।
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वेद तथा पुराणों का पठन-पाठन पवित्र रहना इन्द्रिय संयम करना ज्ञान और ध्यान ये सब साधन नाम स्मरण के अन्तर्गत है । अतः मेरे लिये नाम स्मरण ही मुख्य साधन है । मैं तो दूसरा कोई साधन जानता ही नहीं हूँ । काम क्रोध आदि पर विजय और शरीर को वश में करना यह सब मेरे नाम जप से ही हो जाते हैं ।
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अतः मैं तो नाम को ही जपता हूं । मेरा प्रकट धन या गुप्त धन जो कुछ भी है, वह भी आपका नाम ही है । आपका नाम भक्तों को संसार से पार करने वाला है । आप ही मेरे जीवन के आधार हैं । मेरा मन तो आपके नाम का स्मरण करता हुआ आप के एकरस रहने वाले स्वरूप में ही लीन रहता है ।
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स्तोत्ररत्नावली में लिखा है कि –
हे जिव्हे ! हे रसज्ञे ! संसार रूपी बन्धन को काटने के लिये तू सर्वदा हे गोविन्द ! हे मुरारे ! हे दामोदर ! हे माधव ! इस नाम रूपी मंत्र का जप किया कर, जो सुलभ और सुन्दर है, जिसे व्यास वसिष्ठ आदि ऋषियों को भी पता था । हे जिव्हे तू सदा ही श्री कृष्णचन्द्र के मनोहर और सब संकटों को दूर करने वाले कृष्ण दामोदर माधव आदि नामों को जपा कर ।
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श्री वृहद् भागवतामृत में लिखा है कि – मुरारि का नाम आनन्द स्वरूप है, उस नाम की जय हो जय हो । कर्तव्य कर्मरूप वर्णाश्रम धर्म का क्लेश परमेश्वर के ध्यान धारणा का क्लेश पूजा अर्चना के लिये द्रव्यादि संग्रह का क्लेश, इनमें से कोई भी क्लेश नाम जपने वाले साधक को नहीं करना पड़ता किसी भी प्रकार से एक वार भी नाम का उच्चारण करने पर वह सब प्राणियों के लिये परम उपकारक अमृत स्वरूप है । नाम ही मेरा जीवन वही मेरा भूषण है । मुझे अन्य किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है ।
(क्रमशः)

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