रविवार, 3 जुलाई 2022

*नाम लख्यो जयदेव किंदूबल*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
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*मूसा जलता देख कर, दादू हंस दयाल ।*
*मान सरोवर ले चल्या, पंखा काटे काल ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ निगुणा का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*टेक गहीं नृप सत्य कही जन,*
*जान अमोलक धार लिई है।*
*औगुण को गुण मानत जो जन,*
*सो सब ही विधि जीत भई है ॥*
*संत स्वभाव तजैं न सहै दुख,*
*छाड़त नीच न नीच भई है।*
*नाम लख्यो जयदेव किंदूबल,*
*नाथ रहो इत भक्ति छई है॥२४६॥*
जब राजा ने अति आग्रह किया तब भक्त जयदेव जी ने अपना नाम ग्राम और ठगों ने जो कुछ किया था सब जैसा का तैसा कह दिया। उस बात को अमूल्य अर्थात् यथार्थ समझ कर राजा ने धारली अर्थात् मान ली।
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फिर राजा को हित की शिक्षा देने लगे- जो जन अवगुण करने वाले का भी गुण ही मानते हैं, वे जन प्रभु प्राप्ति रूप परम शांति को प्राप्त होते हैं और ऐसों की सब प्रकार से जीत ही होती रही है।
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जैसे नीच प्राणी अपनी नीचता रूप प्रवृत्ति को नहीं छोड़ते वैसे ही संत जन दुख सहन कर लेते हैं किन्तु अपने साधु स्वभाव को नहीं त्यागते।
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जब जयदेव जी के कहने से राजा को ज्ञात हुआ कि किन्दुबिल्व निवासी गीत-गोविन्द काव्य के कर्ता आपही हैं तब तो अत्यन्त प्रेम से प्रार्थना की- हे प्रभो! मैं आपकी बलिहारी जाता हूँ, अब आप पद्मावतीजी के सहित यहाँ ही विराजकर मुझे सनाथ करिये। जब से आप यहाँ विराजे हैं तब से इस नगर और देश में भगवद्भक्ति उत्पन्न हुई है, उस को बढ़ाइये। यह कृपा अवश्य ही मुझ पर कीजिये।
(क्रमशः)

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