शनिवार, 2 जुलाई 2022

पंचवटी में श्रीरामकृष्ण

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*दादू जल दल राम का, हम लेवैं परसाद ।*
*संसार का समझैं नहीं, अविगत भाव अगाध ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विश्वास का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(४)पंचवटी में श्रीरामकृष्ण*
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नृत्यगोपाल सामने बैठे हुए हैं । सदा ही भावस्थ रहते हैं, बिलकुल चुपचाप ।
श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) – गोपाल ! तू तो बस चुपचाप बैठा रहता है ।
नृत्यगोपाल - (बालक की तरह) - मैं नहीं जानता ।
श्रीरामकृष्ण - मैं समझा, तू क्यों कुछ नहीं बोलता । शायद तू अपराध से डरता है ।
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"सच है । जय और विजय नारायण के द्वारपाल थे । सनक सनातन आदि ऋषियों को भीतर जाने से उन्होंने रोका था । इसी अपराध से उन्हें इस संसार में तीन बार जन्म ग्रहण करना पड़ा था । “श्रीदाम गोलोक में विरजा के द्वारी थे । श्रीमती (राधिका) कृष्ण को विरजा के मन्दिर में पकड़ने के लिए उनके द्वार पर गयी थीं, और भीतर घुसना चाहा - श्रीदाम ने घुसने नहीं दिया; इस पर राधिका ने शाप दिया कि तू मर्त्यलोक में असुर होकर पैदा हो ।
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श्रीदाम ने भी शाप दिया था । (सब मुस्कराये ।) परन्तु एक बात है - बच्चा अगर अपने बाप का हाथ पकड़ता है, तो वह गड्ढे में गिर भी सकता है, परन्तु जिसका हाथ बाप पकड़ता है, उसे फिर क्या भय है ?" श्रीदाम की बात ब्रह्मवैवर्त पुराण में है ।
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केदार चैटर्जी इस समय ढाका में रहते हैं । वे सरकारी नौकरी करते हैं । पहले उनका आफिस कलकत्ते में था । अब ढाके में है । वे श्रीरामकृष्ण के परम भक्त हैं । ढाके में बहुत से भक्तों का साथ हो चुका है । वे भक्त सदा ही उनके पास आते और उपदेश ले जाया करते हैं । खाली हाथ दर्शनों के लिए न जाना चाहिए, इस विचार से वे भक्त केदार के लिए मिठाइयाँ ले आया करते हैं ।
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केदार - (विनयपूर्वक) - क्या मैं उनकी चीजें खाया करूँ ?
श्रीरामकृष्ण - अगर ईश्वर पर भक्ति करके देता हो तो दोष नहीं है । कामना करके देने से वह चीज अच्छी नहीं होती ।
केदार - मैंने उन लोगों से कह दिया है । मैं अब निश्चिन्त हूँ । मैंने कहा है, मुझ पर जिन्होंने कृपा की है, वे सब जानते हैं ।
श्रीरामकृष्ण – (सहास्य) – यह तो सच है, यहाँ बहुत तरह के आदमी आते हैं, वे अनेक प्रकार के भाव भी देखते हैं ।
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केदार - मुझे अनेक विषयों के जानने की जरूरत नहीं है ।
श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - नहीं जी, जरा जरा सा सब कुछ चाहिए । अगर कोई पंसारी की दूकान खोलता है, तो उसे सब तरह की चीजें रखनी पड़ती हैं । कुछ मसूर की दाल भी चाहिए और कहीं जरा इमली भी रख ली - यह सब रखना ही पड़ता है ।
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"जो बाजे का उस्ताद है, वह कुछ कुछ सब तरह के बाजे बजा सकता है ।"
श्रीरामकृष्ण झाऊतल्ले में शौच के लिए गये । एक भक्त गड्डुआ लेकर वहीं रख आये ।
भक्तगण इधर-उधर घूम रहे हैं । कोई श्रीठाकुरमन्दिर की ओर चले गये, कोई पंचवटी की ओर लौट रहे हैं । श्रीरामकृष्ण ने वहाँ आकर कहा - "दो तीन बार शौच के लिए जाना पड़ा, मल्लिक के यहाँ का खाना - घोर विषयी है, पेट गरम हो गया ।”
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श्रीरामकृष्ण के पान का डब्बा पंचवटी के चबूतरे पर अब भी पड़ा हुआ है; और भी दो एक चीजें पड़ी हुई हैं ।
श्रीरामकृष्ण ने मास्टर से कहा - "वह डब्बा, और क्या क्या है, कमरे में ले आओ ।” यह कहकर श्रीरामकृष्ण अपने कमरे की ओर जाने लगे । पीछे पीछे भक्त भी आ रहे हैं । किसी के हाथ में पान का डब्बा है, किसी के हाथ में गडुआ आदि ।
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श्रीरामकृष्ण दोपहर के बाद कुछ विश्राम कर रहे हैं । दो-चार भक्त भी वहाँ आकर बैठे । श्रीरामकृष्ण छोटी खाट पर एक छोटे तकिये के सहारे बैठे हुए हैं । एक भक्त ने पूछा – "महाराज, ज्ञान के द्वारा क्या ईश्वर के गुण समझे जाते हैं ?"
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श्रीरामकृष्ण ने कहा - "वे इस ज्ञान से नहीं समझे जाते; एकाएक क्या कभी कोई उन्हें जान सकता है ? साधना करनी चाहिए । एक बात और, किसी भाव का आश्रय लेना । जैसे दासभाव । ऋषियों का शान्तभाव था । ज्ञानियों का भाव क्या है, जानते हो ? स्वरूप की चिन्ता करना । (एक भक्त के प्रति हँसकर) तुम्हारा क्या है ?"
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भक्त चुपचाप बैठे रहे ।
श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - तुम्हारे दो भाव हैं । स्वरूपचिन्ता करना भी है और सेव्य-सेवक का भाव भी है । क्यों, ठीक है या नहीं ?
भक्त - (सहास्य और ससंकोच) - जी हाँ ।
श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - इसीलिए हाजरा कहता है, तुम मन की बातें सब समझ लेते हो । यह भाव कुछ बढ़ जाने पर होता है । प्रह्लाद को हुआ था ।
"परन्तु उस भाव की साधना के लिए कर्म चाहिए ।
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"एक आदमी बेर का काँटा एक हाथ से दबाकर पकड़े हुए हैं - हाथ से खून टप-टप गिर रहा है, फिर भी वह कहता है, मुझे कुछ नहीं हुआ । लगा नहीं । पूछने पर कहता है, मैं खूब अच्छा हूँ । मुझे कुछ नहीं हुआ । पर यह बात केवल जबान से कहने से क्या होगा ? भाव की साधना होनी चाहिए ।”
(क्रमशः)

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