मंगलवार, 19 जुलाई 2022

*प्रेमाभक्ति*

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*हंस गियानी सो भला, अन्तर राखे एक ।*
*विष में अमृत काढ ले, दादू बड़ा विवेक ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ सारग्राही का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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गिरीश को देखते देखते मानो श्रीरामकृष्ण के भाव का उल्लास और भी बढ़ रहा है । वे खड़े खड़े फिर गा रहे हैं –
(भावार्थ) - "मैंने अभय पद में प्राणों को सौंप दिया है...।"
श्रीरामकृष्ण भाव में मस्त होकर फिर गा रहे हैं –
(भावार्थ) - “मैं देह को संसाररूपी बाजार में बेचकर श्रीदुर्गानाम खरीद लाया हूँ ।”
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श्रीरामकृष्ण (गिरीश आदि भक्तों के प्रति) - " ‘भाव से शरीर भर गया, ज्ञान नष्ट हो गया ।'
"उस ज्ञान का अर्थ है बाहर का ज्ञान । तत्त्वज्ञान, ब्रह्मज्ञान यही सब चाहिए ।
"भक्ति ही सार है । सकाम भक्ति भी है और निष्काम भक्ति भी । शुद्धा भक्ति, अहेतुकी भक्ति - यह भी है । केशव सेन आदि अहेतुकी भक्ति नहीं जानते थे । कोई कामना नहीं, केवल ईश्वर के चरणकमलों में भक्ति !
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"एक और है - उर्जिता भक्ति । मानो भक्ति उमड़ रही है । भाव में हँसता-नाचता-गाता है, जैसे चैतन्यदेव । राम ने लक्ष्मण से कहा, 'भाई, जहाँ पर उर्जिता भक्ति हो, वहीं पर जानो, मैं स्वयं विद्यमान हूँ ।" "
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श्रीरामकृष्ण क्या अपनी स्थिति का इशारा कर रहे हैं ? क्या श्रीरामकृष्ण चैतन्यदेव की तरह अवतार हैं ? जीव को भक्ति सिखाने के लिए अवतीर्ण हुए हैं ?
गिरीश - आपकी कृपा होने से ही सब कुछ होता है । मैं क्या था, क्या हुआ हूँ !
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श्रीरामकृष्ण - अजी, तुम्हारा संस्कार था, इसीलिए हो रहा है । समय हुए बिना कुछ नहीं होता । जब रोग अच्छा होने को हुआ, तो वैद्य ने कहा, 'इस पत्ते को काली मिर्च के साथ पीसकर खाना ।’ उसके बाद रोग दूर हो गया । अब काली मिर्च के साथ दवा खाकर अच्छा हुआ या यों ही रोग ठीक हो गया, कौन कह सकता है ?
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"लक्ष्मण ने लव-कुश से कहा, ‘तुम बच्चे हो, श्रीरामचन्द्र को नहीं जानते । उनके पदस्पर्श से अहिल्या पत्थर से मानवी बन गयी ।' लव-कुश बोले, 'महाराज, हम सब जानते हैं; सब सुना है । पत्थर से जो मानवी बनी, यह मुनि का वचन था । गौतम मुनि ने कहा था कि त्रेतायुग में श्रीरामचन्द्र उस आश्रम के पास से होकर जायेंगे, उनके चरणस्पर्श से तुम फिर मानवी बन जाओगी । सो अब राम के गुण से बनी या मुनि के वचन से, कौन कह सकता है ?"
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"सब ईश्वर की इच्छा से हो रहा है । यहाँ पर यदि तुम्हें चैतन्य प्राप्त हो, तो मुझे निमित्त मात्र जानना । चन्दामामा सभी का मामा है । ईश्वर की इच्छा से सब कुछ हो हो रहा है ।
‘गिरीश (हँसते हुए) - ईश्वर की इच्छा से न ? मैं भी तो यही कह रहा हूँ । (सभी की हँसी)
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श्रीरामकृष्ण (गिरीश के प्रति) - सरल बनने पर ईश्वर का शीघ्र ही लाभ होता है । जानते हो कितनों को ज्ञान नहीं होता ? एक - जिसका मन टेढ़ा है, सरल नहीं है । दूसरा - जिसे छुआछूत का रोग है, और तिसरा जो संशयात्मा है ।
श्रीरामकृष्ण नित्यगोपाल की भावावस्था की प्रशंसा कर रहे हैं ।
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अभी तक तीन-चार भक्त उस दक्षिण-पूर्ववाले लम्बे बरामदे में श्रीरामकृष्ण के पास खड़े हैं और सब कुछ सुन रहे हैं । श्रीरामकृष्ण परमहंस की स्थिति का वर्णन कर रहे हैं ।
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कह रहे हैं, "परमहंस को सदा यही बोध होता है कि ईश्वर सत्य है, शेष सभी अनित्य । हंस में जल से दूध को अलग निकाल लेने की शक्ति है । उसकी जिव्हा में एक प्रकार का खट्टा रस रहता है; दूध और जल यदि मिला हुआ रहे तो उस रस के द्वारा दूध अलग और जल अलग हो जाता है । परमहंस के मुख में भी खट्टा रस है, प्रेमाभक्ति । प्रेमाभक्ति रहने से हो नित्य-अनित्य का विवेक होता है, ईश्वर की अनुभूति होती है, ईश्वर का दर्शन होता है ।”
(क्रमशः)

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