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*चंद, सूर, धर, पवन, जल, ब्रह्मांड खंड प्रवेश ।*
*सो काल डरै करतार तैं, जै जै तुम आदेश ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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४१ काल चेतावनी । धीमाताल
काम कर्म१ वश को नहीं, कहु काहिं बताऊं ।
जे आये ते सब गये, खुर खोज न पाऊं ॥टेक॥
ब्रह्मा विष्णु महेश से, सब मींच मँझारा२ ।
केई चालै केई चालसी, यहु एक विचारा ॥१॥
चन्द्र सूर्य पानी पवन, धरती आकाशा ।
षट् दर्शन अरु खलक सौं, सब सुनिये नाशा ॥२॥
अंतक मुख आकार सब, यहु भोला नहीं ।
जन रज्जब जगदीश भज, जग जाते मांही ॥३॥४१॥
काल की करतूति से सचेत कर रहे हैं -
✦ कहो, काल की करतूति१ के वश में कौन नहीं है ? सभी हैं, फिर हम किसको बतायें । जो जन्म लेकर आये थे, वे सभी काल के गाल में चले गये हैं । हमें उसका खुर खोज अर्थात नाम निशान भी नहीं मिलता ।
✦ ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, जैसे भी मृत्यु के मुख में जाने वाले हैं । कितने ही तो मृत्यु के मुख में जाने के लिये चल रहे हैं और कितने ही जायेंगे । सभी के लिये यह एक ही विचार है कि - सभी नष्ट होंगे ।
✦ चन्द्र, सूर्य, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश, षट् प्रकार के भेष धारियों से लेकर सभी संसार नष्ट होगा ।
✦ सुनो ! सभी आकार काल के मुख में जायेंगे । यह काल भोला नहीं है जो किसी को छोड़ दे । इस काल के मुख में आते जाते हुए जगत में रहकर जगदीश्वर का भजन ही करो यही सार है ।
(क्रमशः)
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