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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२४. सम्रथाई कौ अंग ~ ७३/७६*
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करि अकास, पवन किया, पावक किया प्रकास ।
अनबू किया, धरती करी, सु कहि जगजीवनदास७ ॥७३॥
{७. इस साषी में पांच तत्त्वों के नाम एवं उनके क्रम गिनाये हैं, जैसे-आकाश, पवन, पावक, अम्बु(जल) एवं धरती(पृथ्वी)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि परमात्मा ने आकाश बनाया वायु बनायी, अग्नि तत्त्व रखा, जल व पृथ्वी ये सब बनाये हैं ।
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पंच तत्त करि तन किया, तन मंहि तत्त निवास ।
तत्त ही तत्त पिछांण हरी, सु कहि जगजीवनदास ॥७४॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि पांच तत्वों से देह बनायी और देह में परम तत्व का निवास रखा और पंच तत्वों की देह ने ही परम तत्व को पहचान लिया । वे ही उपकारी हैं ।
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अलख अछारत अनल जल, अरस जमीं अरु बाइ ।
कहि जगजीवन बंदगी, सहज करै सत भाइ ॥७५॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु अदृश्य है अजर है यानि उनकी क्षरण अभी नहीं होता वे अक्षारणीय है । अग्नि, जल, आकाश, धरती और वायु ये सात भाई परस्पर मिल कर उन ब्रह्म की आराधना करते हैं ।
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कोइ जन बूझै बूझ हरी, बलती बलण१ बुझाइ ।
कहि जगजीवन अरस मैं, रांम रमै रस पाइ ॥७६॥
(१. बलती बलण-प्रज्वलित अग्नि)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि कोइ विरला जन ही प्रभु की महिमा जान पाता है कि वे जलती बलती जीवात्मा की अग्नि बुझाते हैं । संत कहते हैं कि वे प्रभु अर्श में हैं और जो उनमें रमता है वह ही आनंद रस पाता है ।
(क्रमशः)
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