🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*सब जीव भुवंगम कूप में, साधु काढैं आइ ।*
*दादू विषहर विष भरे, फिर ताही को खाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ निगुणा का अंग)*
===========
*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
.
*बात बनी न तिया शरमावत,*
*बीत गये दिन फेरि करी है।*
*जान गई पदमावति पारिख,*
*लेत कही सुनके जु मरी है ॥*
*श्वेत हुआ मुख भूपति देखत,*
*आणि जरूं अड़ यह पकरी है।*
*ठीक भई तब स्वामि पधारत,*
*देख मुई कहि इच्छ हरी है॥ २४९॥*
जब पद्मावती जी रानी के उक्त कपट को जान गई और रानी की बात नहीं बनी तब वह बहुत लज्जित हुई; किन्तु अपनी दुर्बुद्धि को नहीं त्यागा। कुछ दिन बीत जाने पर पुनः वैसा ही किया।
.
तब पद्मावतीजी समझ गई कि यह मेरी परीक्षा ले रही है। इसलिये फिर जब उसने कहा - स्वामीजी हरिधाम पधार गये हैं तब उसी क्षण पद्मावतीजी मर गई।
.
यह देखकर रानी का मुख चिन्ता के मारे श्वेत हो गया। राजा ने आकर देखा तो यह कहते हुये कि इस स्त्री के संग से मेरी बुद्धि नष्ट हो गई है, इसलिये मैं अब जल मरूँगा।
.
यह हठ पकड़ लिया और चिता तैयार कराके जलना ही चाहता था कि उक्त समाचार सुनकर शीघ्रता से जयदेवजी वहाँ आये और पद्मावतीजी को मरी हुई देखकर कहा- हरि इच्छा ऐसी ही है।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें