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*दादू खोई आपणी, लज्जा कुल की कार ।*
*मान बड़ाई पति गई, तब सन्मुख सिरजनहार ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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४२ ज्ञान-आंधी । चौताल
आई आंधी अकली१ की, अभि अंतरि देशा ।
बरण बाड़ि सब उडि गई, लहिये नहिं लेशा ॥टेक॥
वृक्ष बड़ाई के पड़े रज राजस ऊड़ि ।
परतकी रीति पक्षी मुये, खै२ मान सु खूड़ी३ ॥१॥
कर्म कजोड़ा उड़ गया, बुधि वायर४ आये ।
छानि मान्य५ सारी चली, भाये अन भाये ॥२॥
सुमति समीर६ समूह तैं, पट पड़दे भागे ।
बादल विरह विगासिये७, नयनों झर लागे ॥३॥
अनल अनिल८ सु ऊलटे, उर अवनि सु धाई ।
रज्जब नेपै९ नाम की, आतमा अघाई१० ॥४॥४२॥
ज्ञान रूप प्रपंड वायु का प्रभार दिखा रहे हैं –
✦ भीतर अंत:करण प्रदेश में ज्ञान१ रूपी आंधी आई है, जिससे वर्ण व्यवस्था की मर्यादा रूप बाड़ उड़ गई है, उसका आग्रह लेश मात्र भी नहीं रहा है ।
✦ बड़ाई रूप वृक्ष उखड़ पड़े हैं । रजोगुण रूप रज उड़ गई है । प्रभु से भिन्न की कीर्ति कथन करना रूप वा दुष्ट स्वभाव रूप पक्षी मर गये हैं । अभिमान रूप खड्डा३ नष्ट२ हो गया है ।
✦ इस ज्ञान पर वायु४ के आते ही कर्म रूप कूड़ा उड़ गया है सब प्रकार की प्रतिष्ठा५ रूप छप्पर उड़ चला है । प्रिय अप्रिय भाव भी नष्ट होकर समता आ गई है ।
✦ सुबुद्धि रूप वायु६ से अज्ञान रूप वस्त्र के पड़दे ऊड़ गये हैं । विरह रूप बादल प्रकट७ हो गये हैं । नेत्र अश्रु पड़ना रूप झड़ लग गया है ।
✦ अनल पक्षी रूप प्राण वायु८ उलट कर हृदय रूप पृथ्वी की ओर दौड़ रहा है अर्थात प्राण का संयम हो रहा है । नाम चिन्तन रूप सुन्दर खेती९ उत्पन्न हो गई है अर्थात निरंतर नाम चिन्तन होता है । इस प्रकार इस आंधी से प्रभु को प्राप्त करके जीवात्मा तृप्त१० हो गया है ।
(क्रमशः)

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