🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
https://www.facebook.com/DADUVANI
*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
.
*२४. सम्रथाई कौ अंग ~ ८१/८४*
.
जो यहु होइ तो यहु करै, करै सो करता रांम ।
कहि जगजीवन सत्ता हरि, अनंत लोक सब ठांम ॥८१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि यदि कर्ता यह जीव हो तो यह कुछ करे । यह कुछ नहीं कर सकता क्योंकि कर्ता तो केवल राम है वे जो करेंगे वह ही होगा सत्ता उन्हीं के हाथ में है वे अनंत लोक व सब स्थानों के मालिक हैं ।
.
अंबु स्त्रवै वीरज जमैं, अनंत उपावै रांम ।
कहि जगजीवन पोख दे, साध सुमिर तिहिं नांम ॥८२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं जल वीरज से प्रभु अनंत जीवों को जन्म देते हैं । वे उन्हें अपने पक्ष या कोख प्रदान करते हैं सभी साधुजन उनका ही स्मरण करते हैं ।
.
एक धणीं४ सब मैं बसै, सकल करै सब जांण ।
तो जगजीवन दूसरा, तिंहि कोई भिदै न बांण ॥८३॥
{४. धणीं-स्वामी(परमेश्वर)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि एक प्रभु ही है जो सब में निवास करते हैं । और सब को अपना जान कर सब करते हैं, उन परमेंश्वर को दूसरा कोइ किसी भी प्रकार से भेद नहीं सकता है वे अभेद हैं ।
.
विष अम्रित जीवत म्रितक, सुख दुख एक समांन ।
कहि जगजीवनदास रत, रसानां हरी गुन ग्यांन ॥८४॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि विष अमृत जीवित मृतक व सुख दुख जिनके लिये सब समान हैं वे प्रभु के दास सदा प्रभु के गुणानुवाद व महिमा ही गाते रहते हैं ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें