शनिवार, 23 जुलाई 2022

*श्री रज्जबवाणी पद ~ ४३*

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*दादू ऊरा पूरा कर लिया, खारा मीठा होइ ।*
*फूटा सारा कर लिया, साधु विवेकी सोइ ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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४३ संत बोध वरद । त्रिताल
संत हु बोध विमल वरदाई१,
जाति पांति जिव की नहिं, जाने परसत२ होत सहाई ॥टेक॥
दृग अनन्त ज्यों देखि दिवाकर३, तम४ तारो५ खुल जाई ।
ऐसे ज्ञान अज्ञान उठावत, उर आँखिन रुसनाई६ ॥१॥
इन्द्र अकलि७ धर ऊपरि वर्षत, घट बध करत न धाई८ ।
नीर ज्ञान के गति मति एकै, नर तरु तन निरताई९ ॥२॥
देव१० दृष्टि नांही तहँ दुविधा, पंच तत्त्व परि पाई ।
रज्जब रही तहां लघु दीरध, समता सुरति११ समाई ॥३॥४३॥
संत पवित्र ज्ञान वर के दाता होते हैं, यह कह रहे हैं -
✦ संत पवित्र बोध रूप वर-के-दाता१ हैं, वे जीव की जाति पांति नहीं जानना चाहते, उनके पास जाकर मिलते२ ही वे शिक्षा द्वारा सहायक होते हैं ।
✦ जैसे सूर्य३ के दर्शन से अनन्त नेत्रों का अंधकार४ रूप ताला५ खुल जाता है, और आँखों को पूर्ण प्रकाश६ प्राप्त होता है, वैसे ही संतों का ज्ञान हृदय से अज्ञान को हटाकर उसमें ज्ञान प्रकाश कर देता है ।
✦ इन्द्र पृथ्वी पर जल वर्षाता है तब कम या अधिक वर्षाने का छल८ नहीं करता सब वृक्षों को समान ही देता है । वैसे ही संत सब को समान ही ज्ञानोपदेश७ करते हैं जल द्वारा वृक्षों की गति अर्थात वृद्धि और ज्ञान द्वारा नर शरीरों की बुद्धि की वृद्धि एक सी होती है । यह हमने विचार लिया९ है ।
✦ उनकी ज्ञान दृष्टि पूज्य१० होती है उसमें द्विविधा नहीं होती और पंच तत्त्व के गुण पंच विषयों के ऊपर उठ जाने पर प्राप्त होती है । छोटे बड़े की भावना उस स्थिति से पीछे ही रह जाती है । उस स्थिति में वृत्ति११ समता समाई रहती है ।
(क्रमशः)

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