शनिवार, 23 जुलाई 2022

*मातृभाव मानो निर्जला एकादशी है*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*सुरति सदा सन्मुख रहै, जहाँ तहाँ लै लीन ।*
*सहज रूप सुमिरण करै, निष्कामी दादू दीन ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ लै का अंग)*
===============
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
*मातृभाव मानो निर्जला एकादशी है*
.
"मातृभाव मानो निर्जला एकादशी है; किसी भोग की गन्ध नहीं है । दूसरी है फल-मूल खाकर एकादशी; और तीसरी, पूरी मिठाई खाकर एकादशी । मेरी निर्जला एकादशी है, मैंने मातृभाव से सोलह वर्ष की कुमारी की पूजा की थी । देखा, स्तन मातृस्तन हैं, योनि मातृयोनि है ।
.
"यह मातृभाव - साधना की अन्तिम बात है । ‘तुम माँ हो, मैं तुम्हारा बालक हूँ ।' यही अन्तिम बात है ।
"संन्यासी की निर्जला एकादशी है; यदि संन्यासी भोग रखता है; तभी भय है । कामिनी-कांचन भोग हैं । जैसे थूककर फिर उसी थूक को चाट लेना ।
.
रुपये-पैसे, मान इज्जत, इन्द्रियसुख - ये सब भोग हैं । संन्यासी का स्त्रीभक्त के साथ बैठना या वार्तालाप करना भी ठीक नहीं हैं - इसमें अपनी भी हानि और दूसरों की भी हानि है । इससे दूसरे लोगों को शिक्षा नहीं मिलती, लोकशिक्षा नहीं होती । संन्यासी का शरीर-धारण लोकशिक्षा के लिए है ।
.
"औरतों के साथ बैठना या अधिक देर तक वार्तालाप करना - इसे भी रमण कहा है । रमण आठ प्रकार के हैं । कोई औरतों की बातें सुन रहा है; सुनते सुनते आनन्द हो रहा है, - यह एक प्रकार का रमण है । औरतों की बात कह रहा है (कीर्तन में) - यह एक प्रकार का रमण है ।
.
औरतों के साथ एकान्त में गुपचुप बातचीत कर रहा है यह एक प्रकार का रमण है । औरतों की कोई चीज पास रख ली है, आनन्द हो रहा है - यह प्रकार है । स्पर्श करना भी एक प्रकार का रमण है; इसीलिए गुरुपत्नी यदि युवती हो तो पादस्पर्श नहीं करना चाहिए । संन्यासियों के लिए ये सब नियम है ।
.
"संसारियों की अलग बात है । वे दो-एक पुत्र होने पर भाईबहन की तरह रहें । उनके लिए अन्य सात प्रकार के रमण से उतना दोष नहीं है ।
"गृहस्थ के ऋण हैं । देवऋण, पितृऋण, ऋषिऋण; फिर स्त्रीऋण भी है – एक दो बच्चे होना और सती हो तो उसका प्रतिपालन करना ।
.
“संसारी लोग समझ नहीं सकते कि कौन अच्छी स्त्री है और कौन बुरी स्त्री; कौन विद्याशक्ति और कौन अविद्याशक्ति । जो अच्छी स्त्री है, विद्याशक्ति है, उसमें काम, क्रोध आदि कम होता है, नींद कम होती है । वह पति के मस्तक को दूर ठेल देती है । जो विद्याशक्ति है उसमें स्नेह, दया, भक्ति, लज्जा आदि होते हैं । वह सभी की सेवा करती है, वात्सल्य भाव से; और पति की भगवान् में भक्ति बढ़ाने का यत्न करती है । अधिक खर्च नहीं करती, कहीं पति को अधिक श्रम न करना पड़े, कहीं ईश्वर के चिन्तन में विघ्न न हो ।
.
"फिर मर्दानी स्वियों के भी लक्षण हैं । खराब लक्षण - टेढ़ी धँसी हुई आँखें, बिल्ली जैसी आँखें, हड्डियाँ उभरी हुई, बछड़े जैसे गाल ।"
गिरीश - हमारे उद्धार का उपाय क्या है ?
श्रीरामकृष्ण - भक्ति ही सार है । फिर भक्ति का सत्त्व, भक्ति का रज, भक्ति का तम भी है ।
.
“भक्ति का सत्त्व है दीन-हीन भाव; भक्ति का तम मानो डाका पड़ने का भाव है - मैं उनका काम कर रहा हूँ, मुझे फिर पाप कैसा ? तुम मेरी अपनी माँ हो, दर्शन देना ही होगा ।"
गिरीश (हँसते हुए) - भक्ति का तम आप ही तो सिखाते हैं ।
.
श्रीरामकृष्ण (हँसते हुए) - परन्तु उनके दर्शन होने का लक्षण है । समाधी होती है । समाधि पाँच प्रकार की होती है । (१) चींटी की गति - महावायु चींटी की तरह उठती है । (२) मछली की गति । (३) तिर्यक् गति । (४) पक्षी को गति - जिस प्रकार पक्षी एक शाखा से दूसरी शाखा पर जाता है । (५) कपिवत् या बन्दर की गति - मानो महावायु कूदकर माथे पर उठ गयी और समाधि हो गयी ।
.
"और भी दो प्रकार की समाधि है । एक - स्थित समाधि, एकदम बाह्यशून्य; बहुत देर तक, सम्भव है, कई दिनों तक रहे । और दूसरी - उन्मना समाधि, एकाएक मन को चारों ओर से समेट कर ईश्वर में लगा देना ।
(मास्टर के प्रति) “तुमने यह समझा है ?"
मास्टर - जी हाँ ।
.
गिरीश - क्या साधना द्वारा उन्हें प्राप्त किया जा सकता है ?
श्रीरामकृष्ण - लोगों ने अनेक प्रकार से उन्हें प्राप्त किया है । किसी ने अनेक तपस्या, साधन-भजन करके प्राप्त किया है, ये हैं साधनसिद्ध कोई जन्म से सिद्ध हैं, जैसे नारद शुकदेव आदि; इन्हें कहते हैं नित्यसिद्ध । दूसरे हैं अकस्मात सिद्ध, जिन्होंने एकाएक प्राप्त कर लिया है; जैसे कोई आशा न थी । पर एकाएक नन्द बसू की तरह धन मिल गया ।
.
"और कुछ लोग हैं स्वप्नसिद्ध और कृपासिद्ध । यह कहकर श्रीरामकृष्ण भाव में विभोर होकर गाना गा रहे हैं ।
(भावार्थ) - "क्या श्यामारूपी धन को सभी लोग प्राप्त करते है ! अबोध मन नहीं समझता है, यह क्या बात है !"
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें