सोमवार, 1 अगस्त 2022

*श्री रज्जबवाणी पद ~ ४७*

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*जहाँ राम तहँ मन गया, मन तहँ नैना जाइ ।*
*जहँ नैना तहँ आतमा, दादू सहजि समाइ ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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४७ निज साधन परिचय । त्रिताल
राम हि नाम मन लीनों ।
गुरु प्रसाद परम रस पूरण, प्राणी१ पीयूष२ सु पीनों ॥टेक॥
सहज समाधि सुरति नित साबित, भाव भक्ति करि भीनों३ ।
अंतरि गगन मगन मद मातो, यहु आरंभ उर कीन्हों ॥१॥
आदि अंकुर गुरु मुख गरज्यों, कठिन कर्म कृत४ छीन्हों५ ।
रज्जब राम रटै निशि बासर, आप उचित दत६ दीन्हों ॥२॥३॥
अपने साधन का परिचय दे रहे हैं -
✦ हमारा मन रामनाम में ही लीन हो रहा है । गुरुदेव के कृपा प्रसाद से पूर्ण ब्रह्म का चिंतन का रूप परम रस हमें प्राप्त हुआ है । उसी अमृत२ को हमारी जीवात्मा१ भली भांति पान कर रहा है ।
✦ वृत्ति सदा पूर्ण रूप से सहज समाधि में रहती है । हृदय भाव भक्ति रस से भीगा३ रहता है । मन आंतर हृदयाकाश में भक्ति रूप मद्य से मत्त होकर हर्षित रहता है । हमने हृदय में यही कार्यारंभ कर रक्खा है ।
✦ गुरु मुख द्वारा हमारे आदि स्वरूप बीज से ज्ञानरूप अंकुर फूट निकला है । उसने पूर्व किये४ हुये कठिन कर्मों को क्षीण५ कर दिया है । हम रात्रि दिन राम का ही चिंतन करते रहते हैं । स्वंय प्रभु ने ही हमें यह उचित दान दिया है ।
इति श्री रज्जब गिरार्थ प्रकाशिका सहित माली गौड़ राग २ समाप्तः ।
(क्रमशः)

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