मंगलवार, 10 जनवरी 2023

बैठौ देषै तलपै भारी

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*बिथा तुम्हारे दर्श की, मोहि व्यापे दिन रात ।*
*दुखी न कीजे दीन को, दर्शन दीजे तात ॥*
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*संत टीला पदावली*
*संपादक ~ ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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न१ जांणौं सांई म्हारौ कब घरि आवै ।
तिहिं बिन पल पल जनम बिहावै ॥टेक॥
रैंनि बिहाई दिन भी जाई । कबहूं दरस२ दियौ नहिं आई ॥
बैठौ देषै तलपै भारी । करि किरपा अब लेहु उबारी ॥
मैं हूं जीव कछू ही नांहीं । दया करौ हरि अन्तर मांहीं ॥
टीलौ देषै सोई कीजै । गुर देव जांणि र३ दरसण दीजै ॥१०॥
(पाठान्तर : १. नां, २. दरसन, ३. रु)
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मैं नहीं जानती, मेरा स्वामी घर पर कब आएगा ! उसके बिना मेरा जन्म पल-पल क्षण-क्षण व्यतीत हुआ जा रहा है ॥टेक॥
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रात्रि व्यतीत हो गई है । अब दिन भी व्यतीत होने को है । उसने कभी भी आकर मुझको दर्शन नहीं दिया । वह दूर बैठा-बैठा देखता है कि मैं बिना उसके साक्षात्कार के तड़प रही हूँ । फिर भी वह मेरे समक्ष आता नहीं है । हे कृपानिधान स्वामी ! कृपा करके मुझ डूबती हुई का उद्धार कर दो, मुझे अपना लो ।
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मैं संसारी जीव हूँ । कुछ भी नहीं हूँ । अपने ह्रदय में मेरे लिए दया उत्पन्न करो । टीला आपका साक्षात्कार कर सके, ऐसा ही कुछ करो । आप मेरे गुरु = परमदेव = परमइष्ट हैं । ऐसा जानकर मुझको दर्शन दो ॥१०॥
(क्रमशः)

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