सोमवार, 9 जनवरी 2023

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*रहते सेती लाग रहु, तो अजरावर होइ ।*
*दादू देख विचार कर, जुदा न जीवै कोइ ॥*
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साभार : @Subhash Jain
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तीन फकीर एक बड़ी यात्रा पर थे, वे एक मरुस्थल से गुजरते थे, मरुस्थल लंबा था और उनकी आशा से ज्यादा लंबा निकला। उनका भोजन चुक गया, उनका पानी चुक गया। और अभी कोई आशा नहीं दिखाई पड़ती थी कि कितनी यात्रा और शेष रह गई है। शायद वे भटक गए थे। एक सांझ जब वे रात को रुके, तो उनके पास केवल एक रोटी का टुकड़ा और एक छोटी सी बोतल पानी की बची थी।
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तीनों लोगों को उतना पानी पूरा नहीं हो सकता था, तीनों लोगों को उतनी रोटी से कोई मतलब हल नहीं होता था। तो उन तीनों ने सोचा, बजाय इसके कि हम तीनों इसे खाएं और तीनों समाप्त हो जाएं, यह उचित होगा कि एक इसे खा ले, शायद वह मंजिल तक पहुंच जाए। दिन, दो दिन की उसे ताकत मिल जाए। लेकिन कौन खाए इसे ? उन तीनों में विवाद हो गया कि कौन खाए इसे ? कोई निर्णय नहीं हो सका।
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तो उन तीनों ने यह सोचा कि हम सो जाएं; एक ने सुझाव दिया कि हम तीनों सो जाएं और रात जो भी सपने हमें दिखाई पड़ें सुबह हम अपने सपने बताएं, और जिसने श्रेष्ठतम सपना देखा होगा वह रोटी और पानी का सुबह अधिकारी हो जाएगा। वे तीनों सो गए।
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फिर सुबह दूसरे दिन उठे, उनमें से एक ने पहले अपना सपना बताया कि मैंने बहुत ही श्रेष्ठ सपना देखा, मैंने देखा सपने में परमात्मा खड़ा है और वह यह कह रहा है कि तेरा आज तक का जीवन अत्यंत पवित्र है, तेरा अतीत एक पवित्रता की कहानी है, तू ही रोटी और पानी के खाने का हकदार है।
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फिर दूसरे फकीर ने कहा कि मैंने भी सपना देखा और मैंने देखा कि अंतरिक्ष से कोई आवाज गूंजती है कि तू ही हकदार है रोटी और पानी का, क्योंकि तेरा भविष्य बहुत उज्जवल है। आने वाले दिनों में तेरे भीतर बड़ी संभावनाएं प्रकट होने को हैं, तुझसे जगत का, लोक का बहुत कल्याण होगा, इसलिए तू ही हकदार है रोटी और पानी का।
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फिर उन दोनों ने तीसरे मित्र से कहा कि तुमने क्या देखा ? उसने कहा: मुझे न तो कोई आवाज सुनाई पड़ी, न कोई परमात्मा दिखाई पड़ा, न कोई मुझसे बोला, मुझे तो मेरे भीतर से यह खबर आई कि तू उठ और जाकर रोटी और पानी खा ले। तो मैं तो खा भी चुका हूं। ये तीन फकीर हैं। इनमें एक अतीत की कथा को श्रेष्ठ समझ रहा है, दूसरा भविष्य के आने वाले दिनों को; लेकिन एक वर्तमान के क्षण को ही जी लिया है, जी चुका है।
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आनंद के अनुभव को वे लोग उपलब्ध नहीं होते जो पीछे लौट कर देखते रहते हैं, वे लोग भी नहीं जो आगे का सोचते रहते हैं, केवल वे ही लोग जो प्रतिक्षण जीते हैं, प्रतिक्षण। और जीवन में जो भी उपलब्ध है प्रतिक्षण उसे पी लेते हैं और स्वीकार कर लेते हैं। और इसे इस भांति स्वीकार कर लेते हैं कि जैसे इसके आगे कोई क्षण नहीं, जैसे इसके आगे कोई जीवन नहीं, जैसे यह अंतिम निपटारे का क्षण है। जो पीछे लौट-लौट कर देखते रहते हैं उनके वर्तमान का क्षण हाथ से छूट जाता है।
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जो आगे-आगे सपने देखते रहते हैं उनका भी वर्तमान का क्षण हाथ से छूट जाता है। और स्मरण रहे, कि वर्तमान के क्षण के अतिरिक्त, वर्तमान के क्षण के अतिरिक्त किसी चीज का कोई अस्तित्व नहीं है। वर्तमान का क्षण ही है केवल, वही द्वार बन सकता है अनुभव का, आनंद का, प्रभु का। तीव्र जीवन चाहिए वर्तमान के क्षण पर केंद्रित। वर्तमान के क्षण पर घनीभूत तीव्र जीवन चाहिए। जितना तीव्र जीवन होगा उतने ही आनंद की झलकें मिलनी शुरू हो जाएंगी।
शून्य समाधि-३

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