बुधवार, 25 जनवरी 2023

शब्दस्कन्ध ~ पद #२८८

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #२८८)*
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*२८८. परिचय पराभक्ति (कोकिल ताल)*
*अखिल भाव अखिल भक्ति, अखिल नाम देवा ।*
*अखिल प्रेम अखिल प्रीति,अखिल सुरति सेवा ॥टेक॥*
*अखिल अंग अखिल संग, अखिल रंग रामा ।*
*अखिला रत अखिला मत, अखिला निज नामा ॥१॥*
*अखिल ज्ञान अखिल ध्यान, अखिल आनन्द कीजे ।*
*अखिला लय अखिला में, अखिला रस पीजे ॥२॥*
*अखिल मगन अखिल मुदित, अखिल गलित सांई ।*
*अखिल दर्श अखिल पर्श, दादू तुम मांहीं ॥३॥*
इति राग टोडी समाप्त ॥१६॥पद २०॥
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भावदी०-निर्गुणोपासनाया उत्कृष्टदशायां ज्ञातस्य परब्रह्मण: सर्वप्रकारेण श्रद्धान्वितेन साधकेन भक्ति: कार्या । सर्वथा तस्यैव नामचिन्तनं कर्तव्यम्, सः प्रभुः सर्वथा प्रेम पात्रमस्ति । सर्वस्वरूपे स्वकीयां मनोवृत्तिं विधाय सेवा कर्तव्या । सर्वाष्ववस्थासु स एव प्रेमपात्रमस्तीति मत्वा तस्य प्रेमभक्ति कुरु । सः सर्वरूपत्वेन सर्वशरीरेषु विद्यमान: सर्वसङ्गी भवति । तस्य रामादिनाम्ना चिन्तनं कुर्यात् । तस्यैव ध्यानं-ज्ञानं तस्यैव दर्शनमुत्तममस्ति । सर्वत आनन्द स्वरूपे ब्रह्मणि मनोवृत्ति निधाय सर्वरसरूपस्य दर्शनं कुर्यात् । तत्प्रेरिण गलित: प्रसन्न: सन् सर्वरूपे ब्रह्मणि लीनं भवेत् । सर्वस्मिन् जगति दर्शनस्पर्शन योग्य: परब्रह्म परमात्मा सर्वान्तःकरण एव स्थितोऽस्ति ।
महामण्डलेश्वर श्रीमदात्मारामस्वामिकृत भावार्थदीपिकायां टोडी: राग समाप्तः ॥१६॥
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निर्गुण उपासना की उत्कृष्ट अवस्था में जाने हुए ब्रह्म की साधक को हर प्रकार से श्रद्धापूर्वक भक्ति करनी चाहिये । सदा उनके नामों का ही चिन्तन करना चाहिये । वह प्रभु ही प्रेम का पात्र है । सर्वरूप उस ब्रह्म में अपने मन की वृत्ति लगाकर सेवा करनी चाहिये ।
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सभी अवस्थाओं में वह ही प्रेम पात्र है । ऐसा जान कर उससे प्रेम करो । वह परमात्मा सर्व शरीरों में सर्वरूप से विराजमान है तथा सबके संग रहता है । राम नाम से या सोऽम् आदि शब्दों से चिन्तन करना चाहिये । उसी का ज्ञान, ध्यान, दर्शन करना उत्तम है ।
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सर्व प्रकार से आनन्द स्वरूप ब्रह्म में मन की वृत्ति को स्थिर करके सर्वरसरूप ब्रह्म का दर्शन करते रहना चाहिये । उसके प्रेम में गलित होकर, प्रसन्न हो होकर, अपने मन को उसमें लीन कर दो । सब में दर्शन स्पर्श करने योग्य वह परब्रह्म परमात्मा सबके अन्तःकरण में ही स्थित है ।
इति राग टोडी का पं. आत्मारामस्वामी कृत भाषानुवाद समाप्त ॥१६॥
(क्रमशः)

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