बुधवार, 25 जनवरी 2023

*श्री रज्जबवाणी पद ~ १०७*

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*दादू उस गुरुदेव की, मैं बलिहारी जाऊँ ।*
*जहाँ आसण अमर अलेख था,*
*ले राखे उस ठाऊँ ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग गुंड(गौंड) ६ (गायन समय - वर्षा ॠतु सब समय)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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१०७ सदगुरु उपकार । कहरवा
गुरु गरवा१ दादू मिल्या, दीरघ दिल दरिया ।
दर्शन परसन२ होत ही, भंजन३ भल भरिया ॥टेक॥
श्रवण कथा साँची सुनी, संगति सदगुरु की ।
दूजा दिल आवै नहीं, जब धारी धुर४ की ॥१॥
भरम भुजागल५ भान दी, शंका सब तोड़ी ।
साँची सगाई६ राम की, ले७ ता सौं जोड़ी ॥२॥
सदगुरु के सदके८ किया, जिन जीव जिलाय ।
सहज सजीवन कर लिया, सांचे संग लाया ॥३॥
जन्म सफल तब का भया, चरणों चित लाया ।
रज्जब राम दया करी, दादू गुरु पाया ॥४॥१॥
सदगुरु का उपकार दिखा रहे हैं -
✦ मुझे महान१ संत दादूजी गुरु मिले हैं, उनका हृदय विशाल समुद्र के समान है । उनके दर्शन और चरण स्पर्श२ से मैंने अपने हृदय रूप पात्र३ को भगवद् भाव से भर लिया है ।
✦ सदगुरु की संगति में श्रवणों से सच्चिदानन्द प्रभु की सच्ची कथा सुनी है । उनके संग से अचल४ ब्रह्म की भावना धारण की है, तब से हृदय में ब्रह्म चिंतन से भिन्न दूसरा कुछ भी नहीं आता ।
✦ गुरु देव ने भ्रमरूप शिला५ को नष्ट कर दिया है, सब शंका तोड़ डाली है । गुरु ने राम का संबन्ध ही सच्चा संबन्ध६ बताया है । इसलिये हमने अपनी वृति को संसार से उठाकर७ उन राम से ही जोड़ी है ।
✦ जिनने जीव को जीवन दान दिया है, उन सदगुरु के ऊपर हमने अपने को निछावर८ कर दिया है । गुरु ने हमें सच्चे ब्रह्म के साथ लगाकर सहज सजीवन ब्रह्म ही बना दिया है ।
✦ तब से हमारा जन्म सफल हो गया है । राम ने हमारे पर दया करी है, तभी तो दादूजी गुरु प्राप्त हुये हैं ।
(क्रमशः)

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