बुधवार, 25 जनवरी 2023

*करै कुसंग कलेस उठावै*

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*काम क्रोध कदे नहीं छीजे,*
*लालच लाग विषय रस पीजे ॥*
*दादू देख मिले क्यों साँई,*
*विषय विकार बसे मन मांही ॥*
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*संत टीला पदावली*
*संपादक ~ ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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फिट रे फिट ‘फिट रे’१ मन अपराधी । 
हरि रस छाड़ि विषै हीं साधी ॥टेक॥
साध कहैं सो होइ न आयौ । 
कांम क्रोध हीं कै संगि धायौ ॥
करै कुसंग कलेस उठावै । 
ताथैं दुरमति ऊपजि आवै ॥
कह्यौ सुण्यौं तेरे चिति न आयौ । 
रांमभजन बिन जनम गवायौ ॥
गुर दादू कहि कहि समझायौ । 
टीला मन कै अंगि न आयौ ॥१६॥
(पाठान्तर : ‘फिट रे’, के स्थान पर केवल ‘रे’ है)
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हे अपराधी मन ! तुझे धिक्कार है; तुझे धिक्कार है क्योंकि तूने हरि स्मरण रूपी रामानन्द को छोड़कर विषय-विकारों में ही अपने आपको सदैव आकंठ डुबोकर रखा ॥टेक॥
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साधुजन जिन सदाचरणों को आचरित करने को कहते रहे उनका आचरण तेरे से न हो सका उल्टे तू काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्यादि को अपनाए हुए जीवन जीता रहा । तू बुरे लोगों का संग करता है जिस कारण नाना क्लेश = सन्तापों को भुगतता है और तुझमें दुर्मति उत्पन्न हो जाती है ।
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जो भी कुछ तुझको कहा गया और सुनाया गया वह तेरे चित्त में कभी भी किसी भी रूप में नहीं घुसा । तूने रामजी का स्मरण न करके अपना बहुमूल्य जीवन बर्बाद कर डाला है । गुरुमहाराज दादूजी ने बार-बार कहकर खूब समझाया है, फिर भी हे टीला ! मन ने एक बात को भी स्वीकार नहीं की ॥१६॥
(क्रमशः)

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