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*दादू पड़दा भ्रम का, रह्या सकल घट छाइ ।*
*गुरु गोविन्द कृपा करैं, तो सहजैं ही मिट जाइ ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग टोडी । (गायन दिन ६ से १२)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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१०३ वार पार । धीमा ताल
पारै पार पुकारैं लोई१, वार पार की खबर न कोई ॥टेक॥
पार कहैं सोई सब वारा, समझ सोच कछु करो विचारा ॥१॥
भेष भरम करतूति२ सु वारा, तीरथ वरत सु मांड३ मंझारा ॥२॥
जप तप साधन वैली४ आरा, स्वर्ग पताल दुनी में दौरा५ ॥३॥
रिधि सिधि सबै सु वैली६ आसा, आगम७ निगम८ जगत में वासा ॥४॥
पार परम गुरु सब तैं आगे, रज्जब वार पार यूं त्यागे ॥५॥२०॥
वार पार संबंन्धी विचार प्रकट कर रहे हैं -
✦ लोग प्राय: पार ही पार पुकारते रहते हैं किंतु उन्हे वार पार का कुछ पता नहीं होता ।
✦ कुछ समझ सोचकर विचार करेंगे तो ज्ञात होगा कि जो अपने को संसार से पार कहते हैं वे सब वार अर्थात संसार में ही हैं ।
✦ भेष भ्रम रूप है, कर्म२ करना भी संसार में ही होता है । तीर्थ व्रत भी संसार३ में ही हैं ।
✦ जप तप आदि साधन भी इस४ ओर अर्थात संसार में ही हैं । स्वर्ग ओर पाताल में जाना५ भी संसार में ही है ।
✦ ॠद्धि ओर सिद्धि आदि सब की आशा भी इधर६ की अर्थात संसार की वस्तु है । शास्त्र७ वैद८ का भी जगत में निवास है ।
✦ इन सब के जो आगे निकल गये हैं, वे परम गुरु ही संसार से पार हैं । ऐसा विचार करके मैंने वार पार का भ्रम त्याग दिया है । परब्रह्म सर्वत्र व्यापक है उसे वार पार नहीं कह सकते ।
(क्रमशः)
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