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*जोगिया बैरागी बाबा,*
*रहै अकेला उनमनि लागा ॥टेक॥*
*आतम जोगी धीरज कंथा,*
*निश्चल आसण आगम पंथा ॥१॥*
सहजैं मुद्रा अलख अधारी,*
*अनहद सींगी रहणि हमारी ॥२॥*
*काया वन-खंड पांचों चेला,*
*ज्ञान गुफा में रहै अकेला ॥३॥*
*दादू दर्शन कारण जागे,*
*निरंजन नगरी भिक्षा मांगे ॥४॥*
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*संत टीला पदावली*
*संपादक ~ ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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जोगी कूं१ कोई जिनि न्यंदौ२ ।
जहीं ठै देषौ तहीं ठै बंदौ३ ॥टेक॥
महादेव थैं चाली आदि ।
जुगि जुगि अटल न टली समाधि ॥
मछिन्द्र गोरष गुर सिष चेला ।
लागि धणीं सूँ रह्या अकेला ॥
गोपीचन्द राजा भरथरी ।
अमर रह्या जौलौं धरतरी ॥
जोगी सो जिंहिं या जुगति बणाई ।
बासूं४ लागि रह्यो रे भाई ॥
टीला जोगी सो करि जांणीं ।
जिहि धरती अम्बर मेल्हा तांणीं ॥१३॥
(पाठान्तर : १. कौं, २. निंदौ, ३. बिंदौ, ४. तासौं)
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योगी की निन्दा किसी को भी नहीं करनी चाहिए । वह जहाँ भी, जब भी मिले, वहीं उसी समय उसकी वन्दना करनी चाहिए ॥टेक॥
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योगियों की परम्परा प्रारम्भ में महादेव से प्रारम्भ हुई है ।उसी महदेव से जिसकी समाधि टलाने पर भी टली नहीं प्रत्युत् अटल ही बनी रही ।
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मत्स्येन्द्रनाथ गुरु तथा गोरखनाथ शिष्य थे । उन्होंने स्वामी रूप परमात्मा की भक्ति की और अकेले ही रहे ।
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भर्तृहरि और गोपीचन्द राजा ने योग की साधना की जिससे वे तब तक के लिए अमर हो गए तब तक इस धरती का अस्तित्व है ।
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योगी वह है जो उक्त प्रकार की युक्ति का अवलम्बन लेता है । हे भाई ! ऐसे योगी का ही आश्रय लो ।
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टीला कहता है, योगी वह है, जो धरती रूपी शरीर में अम्बररुपी परमात्मा को जान लेता है ॥१३॥
(क्रमशः)
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