शनिवार, 7 जनवरी 2023

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*जात कत मद को मातो रे ।*
*तन धन जोबन देख गर्वानो,*
*माया रातो रे ॥टेक॥*
*मैं मैं करत जन्म सब खोयो,*
*काल सिरहाणे आयो रे ।*
*दादू देख मूढ़ नर प्राणी,*
*हरि बिन जन्म गँवायो रे ॥*
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साभार : @Subhash Jain
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*अहंकार का भ्रम*
मेरे प्रिय आत्मन् !
कोई दो हजार वर्ष पहले यूनान में एक फकीर था, डायोजनीज। बड़ा अजीब फकीर था। आधी जिंदगी हाथ में एक लालटेन लिए दिन की दोपहरी में घूमा करता था! लोग उससे पूछते कि हाथ में लालटेन क्यों लिए हो, जब कि सूरज आकाश में प्रकाशित है और पृथ्वी रोशनी से भरी है। तो वह कहता कि हाथ में लालटेन लिए इसलिए घूमता हूं ताकि मैं किसी मनुष्य को खोज सकूं। लेकिन भरी दोपहरी में लालटेन लेकर घूमने से भी मुझे कोई मनुष्य नहीं मिला। फिर उसने नगर छोड़ दिया और एक छोटी सी गुफा में एक कुत्ते के साथ निवास करने लगा।
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एक रात उसका जीवन मैं पढ़ता था। वह किताब बंद करके मैं सो गया और मैंने एक सपना देखा। सपने में मैंने देखा कि डायोजनीज अपनी गुफा में बैठा है अपने कुत्ते के साथ, और मैं भी उसकी गुफा में मौजूद हूं। मैंने डायोजनीज से पूछा कि मैंने सुना है कि तुम आदमी को खोजते-खोजते थक गये और तुम्हें कोई आदमी नहीं मिला। जमीन पर जो इतने आदमी दिखायी पड़ते हैं, ये क्या हैं ?
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वह डायोजनीज बोलाः वे केवल आदमी की शक्लें हैं, आदमी की आत्माएं नहीं। और मैं ऊब गया हूं। आदमी का साथ मैंने छोड़ दिया और अब मैं इस कुत्ते के साथ रहने लगा हूं ! मैंने उससे पूछा क्या कुत्ते का साथ आदमी के साथ से बेहतर हैं ? वह बोलाः हां, कुत्ते में मुझे कोई रोग नहीं दिखाई पड़े, जो आदमी में हैं। और जब कोई किसी आदमी को घृणा से कुत्ता कहने लगता है, तब मुझे क्रोध आ जाता है, क्योंकि कोई कुत्ता इतना बुरा नहीं है, जितना आदमी है।
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जब कोई कुत्ते से आदमी की तुलना कर देता है, तो मुझे कुत्ते का अपमान मालूम पड़ता है। कुत्ता बहुत अदभुत है और अच्छा है। न तो कुत्तों ने कभी युद्ध किए, न कुत्तों ने बड़ी हिंसा की। न तो कुत्तों ने कोई परिग्रह किया है, न कुत्ते आपस में विभाजित हैं, न उनके समाज और संगठन हैं। कुत्ते बड़े सीधे और सरल हैं। मैं तो बहुत हैरान होने लगा उसकी कुत्ते की प्रशंसा को सुन कर। और उस डायोजनीज ने कहा कि मैं तुमसे यह कहता हूं कि एक वक्त आएगा कि कोई आदमी आदमी का साथ करना पंसद नहीं करेगा।
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लोग कुत्ते पाल लेंगे और लोग कुत्तों के साथ ही घूमने जाया करेंगे।मैंने उससे पूछाः कुत्ते में ऐसी क्या खूबी है ? लेकिन डायोजनीज तो नहीं बोलाः उसका कुत्ता हंसने लगा। तो मैं और भी घबड़ा गया, क्योंकि हंसना और रोना आदमी के सिवाय और किसी पशु मे नहीं होता। सिर्फ आदमी हंसता है, और कोई जानवर नहीं हंसता। कुत्ते को हंसते देख कर मुझे बहुत परेशानी हुई और मैंने कुत्ते से पूछाः क्या तुम हंसते भी हो ?
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वह कुत्ता बोला कि आदमी के साथ रहते-रहते उसकी कुछ बीमारियां मैं भी सीख गया हूं। न केवल हंसता हूं, बल्कि मैं बातचीत करना भी सीख गया हूं, जो अकेले आदमी की बीमारी है, और किसी पशु की नहीं है। उसे बातचीत करते देख कर अचंभा हुआ और मैंने उससे पूछा कि क्या बात है कि डायोजनीज तुम्हें इतना पसंद करता है ? उसने जो मुझसे कहा था, वह मैं आपसे कहना चाहता हूं।
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उस कुत्ते ने मुझसे कहाः कुत्ता अकेला प्राणी है, जो आदमी की कमजोरी समझ गया। हम पूंछ हिला देते हैं और आदमी खुश हो जाता है, यह उसकी कमजोरी है। इसलिये डायोजनीज मुझसे खुश है, क्योंकि मैं पूंछ हिलाता हूं। और आदमी कुत्तों से खुश हो जायेगा, क्योंकि आदमी की कमजोरी है कोई, जो कि कुत्ते के पूंछ हिलाने से पूरी हो जाती है। मेरी तो नींद खुल गयी। उस कुत्ते की बातें सुन कर और मैं बहुत सोचता रहा कि यह आदमी की कमजोरी क्या है ? और इस आदमी की कमजोरी की खोज में मैं था कि मुझे एक और घटना स्मरण आई।
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एक फकीर था नसरुद्दीन। फकीर होने से पहले वह एक छोटे से गांव में एक छोटी सी होटल का मालिक था। एक दिन सुबह-सुबह देश का राजा जंगल में शिकार करने को निकला, भटक गया और उस होटल में आ गया। उसने नसरुद्दीन ने कहा कि अंडे मिल सकेंगे ? नसरुद्दीन ने कुछ अंडे उसे और उसके साथियों को दिये। खाने के बाद उस राजा ने पूछा कि कितने दाम हुए? नसरुद्दीन ने कहाः सौ रुपये। वह राजा हैरान हो गया। उसने कहाः चार-छह अंडों के दाम सौ रुपये ? दो-चार पैसे भी इनके दाम नहीं हैं ! क्या तुम्हारे इस हिस्से में अंडे इतने कम होते हैं ? आर एग्ज सो रेयर हियर ? क्या इतने कम अंडे यहां होते हैं ?
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नसरुद्दीन ने कहा कि नहीं महाराज, एग्ज आर नॉट रेयर हियर, बट किंग्ज आर। यहां अंडे तो नहीं होते कम, लेकिन राजा मुश्किल से कभी कोई आता है ! उसने सौ रुपये निकाले और दे दिए। नसरुद्दीन की पत्नी बहुत हैरान हुई। उसने कहाः हद कर दी, चार-छह अंडों के सौ रुपये तुमने ले लिए। क्या तरकीब हैं ? नसरुद्दीन ने कहाः मैं आदमी की कमजोरी जानता हूं। उसकी औरत ने कहाः मैं समझी नहीं। यह आदमी की कमजोरी क्या बला है ? नसरुद्दीन ने कहाः मैं एक कहानी और कहता हूं, शायद तेरी समझ में आ जाए कि आदमी की कमजोरी क्या है।
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नसरुद्दीन ने कहाः एक बार ऐसा हुआ कि मैं एक बहुत बड़े सम्राट के दरबार में गया। मैंने एक बहुत सस्ती सी पगड़ी पहन रखी थी, लेकिन बहुत रंगीन थी, बहुत चमकदार थी। असल में सस्ती चीजें बहुत रंगीन और बहुत चमकदार होती ही हैं। मैं उस पगड़ी को पहन कर दरबार में गया, तो राजा ने मुझसे पूछा कि यह पगड़ी कितने की है ? मैंने कहाः एक हजार स्वर्ण-मुद्राओं की। वह राजा हंसने लगा और उसने कहाः क्या मजाक करते हो ? क्या इतनी मंहगी पगड़ी है यह ?
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और तभी वजीर राजा के पास झुका और उसके कान में कहाः इस आदमी से सावधान रहना। यह दो-चार रुपये की पगड़ी भी नहीं मालूम होती। एक हजार स्वर्ण-मुद्राएं कह रहा है ! कोई लुटेरा मालूम होता है। नसरुद्दीन ने कहाः मैं समझ गया कि वजीर क्या कह रहा है। क्योंकि जो लोग राजा को खुद लूटते रहते हैं, दूसरा कोई लूटने आये, तो वे लोग बाधा जरूर देते हैं। वजीर बाधा दे रहा होगा। लेकिन मैं भी कुछ कम होशियार न था।
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मैंने राजा से कहाः तो मैं जाऊं ? मैंने यह पगड़ी एक हजार स्वर्ण-मुद्राओं में खरीदी थी और जिस आदमी की खरीदी थी, उसने मुझसे कहा था, तू घबड़ा मत। इस जमीन पर एक ऐसा राजा भी है, जो इसे पांच हजार स्वर्ण-मुद्राओं में खरीद सकता है। मैं उसी राजा की खोज में निकला हूं, तो मैं लौट जाऊं ? तुम वह राजा नहीं मालूम होते ! यह दरबार वह दरबार नहीं है, जहां पांच हजार में खरीदी जा सके ? मैं जाऊं ? वह राजा बोलाः दस हजार स्वर्ण-मुद्राएं इसे दे दो और पगड़ी ले लो।
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वह पगड़ी ले ली गयी। वजीर किनारे मेरे पास आया और उसने कहाः तुम बड़े जादूगर मालूम होते हो। क्या कर दिया तुमने? दस रूपये की पगड़ी नहीं है, दस हजार रूपये में खरीद जी गयी ! तो मैंने उसके कान में कहाः तुम पगड़ियों के दाम जानते हो, तो मैं आदमी की कमजोरी जानता हूं।
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आदमी की कमजोरी क्या है ? अहंकार आदमी की कमजोरी है। और जो जितना ज्यादा अहंकार से भरा है, वह उतना ही कमजोर है। और हम सब अहंकार से भरे हैं। हम सब अहंकार से ठोस भरे हैं। हम इतने ज्यादा अहंकार से भरे हैं कि हम में परमात्मा के प्रवेश की कोई संभावना नहीं है।
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जो मनुष्य अहंकार से भरा है, वह सत्य को नहीं जान सकेगा। क्योंकि सत्य के लिये चाहिये खाली और शून्य मन। और जो अहंकार से भरा है, वह बिल्कुल भी खाली नहीं है जहां कि परमात्मा की किरणें प्रवेश पा सकें, जहां कि सत्य प्रवेश पा सके और स्थान पा सके। मनुष्य के अहंकार के अतिरिक्त और कोई बाधा नहीं है।

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