सोमवार, 9 जनवरी 2023

*कुंजर लागत नांहिं कुता के*

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*दादू गुप्त गुण परगट करै, परगट गुप्त समाइ ।*
*पलक मांहि भानै घड़ै, ताकी लखी न जाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*एक कहो द्विज भात भर्यो हद,**ठांव दिये अगनंत सुता के।*
*भूप लगे पग भक्ति करो जगि,**कुंजर लागत नांहिं कुता के ॥*
*और सुनो इक ठाकुर देवल,**गावत राग किदारउ ताके।*
*माल हुती हरि के गल में उर,**आय गई नरसी महता के ॥३००॥*
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नरसी जी का भक्तिप्रभाव से युक्त उत्तर सुनकर प्रतिपक्षी लोग परास्त हुए, तब एक हरि भक्त ब्राह्मण देव ने राजा को पहरावनी के समय का प्रभाव सुनाया। वह बोला महाराज! मैने आँखों देखा है—आपने एक कोठरी में आड़ा पड़दा लगाकर प्रभु का यश गान किया था। तब वह कोठरी अनेक प्रकार के वस्त्रभूषणों से भर गई थी। फिर ग्राम भर को हद की पहरावनी दी थी। और अपने पुत्री के लिए तो अनन्त वस्तुयें दी थीं।
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यह सुनकर हुमायू के अधीन जूनागढ़ के राजा राव मण्डलीक नरसीजी के चरणों में प्रणाम करके बोले- 'आप अपने स्थान पर पधारिये और हरि यश गान करते हुए आनन्द से विराजिये । जगत में महापुरुषों के पीछे अनेक कुजन लगते हैं किन्तु जैसे भौंकने वाले कुत्तों के पीछे हाथी नहीं जाता वह अपनी सहज गति से चलता ही रहता है, वैसे ही महापुरुष कुजनों के पीछे नहीं जाते वे तो अपना भगवद्धजन रूप कार्य करते ही रहते हैं।' फिर नरसीजी आनन्द से बाइयों के साथ अपने घर आ गये।
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नरसीजी की एक अद्भुत कथा और सुनिये। एक दिन आप प्रभु के मंदिर में प्रेमपूर्वक केदार राग में प्रभु के गुण गा रहे थे। उस समय हरि के गले में जो पुष्पों की माला थी सो नरसी महता के गले में पड़कर उनके हृदय पर शोभा देने लगी।
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इसी प्रकार जब नरसी केदार राग में हरि यश गाते तब हरि के गले की पुष्पमाला नरसीजी को प्रसाद रूप में प्राप्त होती थी। यह चमत्कार देखकर बहुत-से लोग हरि भक्त हो गये थे किन्तु दुर्जन थे वे तो अपने स्वभाव से दुखी ही होते थे।
(क्रमशः)

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