शनिवार, 7 जनवरी 2023

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*परम गुरु सो प्राण हमारा,*
*सब सुख देवै सारा ।*
*दादू खेलै अनन्त अपारा,*
*अपारा सारा हमारा ॥*
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साभार : @Subhash Jain
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गुरु के पास जो बैठेगा, वह गुरु की सत्ता से आच्छादित होता है !
"उपसीदन द्रष्टा भवति !
और पास बैठने से द्रष्टा बनता है ! उपसीदन शब्द से ही उपनिषद बना है ! उपसीदन यानी पास बैठना ! यह जान कर तुम हैरान होओगे कि उपसीदन शब्द से उपनिषद निर्मित हुआ है ! 
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उपनिषद का अर्थ है, गुरु के पास बैठ कर जो पाया; पास बैठ-बैठ कर जो मिला ! कभी बोलने से मिला ! कभी न बोलने से मिला; कभी कभी गुरु को देखने से मिला; कभी गुरु के पास आंख बंद करने से मिला ! कभी गुरु के उठने से मिला, कभी चलने से मिला, कहना कठिन है ! 
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मगर गुरु के पास होने पर अनेक-अनेक रुपों मिलता है ! अनेक-अनेक तरह से संग बैठता है ! तार छिड़ने लगते है वीणा के ! गुरु के पास यूं तल्लीन हो कर बैठ जाना, कि तुम मिट ही जाओ, उपासना है ! 
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और ऐसी उपासना में, ऐसे उपवास में जो सुन पड़ेगा, जो समझ आ जाएगा, जो किरण तुम्हारे प्राणों में उतर जाएगी, वही उपनिषद बन जाती है ! उपनिषद का अर्थ है, पास बैठ कर जो पाया ! और जो पास बैठेगा, उसे आंख मिलती है, वह द्रष्टा हो जाता है !
** ओशो **

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