मंगलवार, 10 जनवरी 2023

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*दादू देखु दयालु को,*
*सकल रह्या भरपूर ।*
*रोम रोम में रमि रह्या,*
*तूँ जनि जानै दूर ॥*
*दादू देखु दयालु को,*
*बाहरि भीतरि सोइ ।*
*सब दिसि देखौं पीव को,*
*दूसर नाहीं कोइ ॥*
*दादू देखु दयालु को,*
*सनमुख सांई सार ।*
*जीधरि देखौं नैंन भरि,*
*तीधरि सिरजनहार ॥*
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साभार : @Subhash Jain
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भजन का क्या अर्थ है ?
बैठ कर मंजीरा बजा लिया, कि राम नाम की धुन कर ली, कि राम नाम का अखंड पाठ कर लिया ? नहीं इन ओपचारकिताओं से भजन नहीं होता ! भजन का अर्थ है; प्राण प्रभु के प्रेम में पड़े, एक धुन भीतर बजती रहे, अहर्निश; उठते बैठते एक स्मरण सतत बना रहे । एक धारा बहती रहे प्रभु की । जो देखो उसमें प्रभु दिखाई दे, जो करो उसमें प्रभु दिखाई पड़े ।
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सारा जगत परम पुनीत है, पावन है । क्योंकि परमात्मा से आपुर है !
हवाएं वृक्षों से गुजरे तो उसकी आवाज स्मरण रखना; कोयल पुकारने लगे दूर से तो उसने ही पुकारा है ! कोयल के रूप में, ऐसा अनुभव करना ! ऐसी प्रतीति की सघनता का नाम भजन है !!
ओशो

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