🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
https://www.facebook.com/DADUVANI
भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #२८६)*
================
*२८६. विनती । वसंत ताल*
*आदि है आदि अनादि मेरा, संसार सागर भक्ति भेरा ।*
*आदि है अंत है, अंत है आदि है, बिड़द तेरा ॥टेक॥*
*काल है झाल है, झाल है काल है, राखिले राखिले प्राण घेरा ।*
*जीव का जन्म का, जन्म का जीव का, आपही आपले भांन झेरा ॥१॥*
*भ्रर्म का कर्म का, कर्म का मर्म का, आइबा जाइबा मेट फेरा ।*
*तार ले पार ले, पार ले तार ले, जीव सौं शिव है निकट नेरा ॥२॥*
*आत्मा राम है, राम है आत्मा, ज्योति है युक्ति सौं करो मेला ।*
*तेज है सेज है, सेज है तेज है, एक रस दादू खेल खेला ॥३॥*
.
भा०दी०-न आदिर्यस्य सोऽनादि कारणरहित: । न तस्य कार्य करणं च विद्यते इति श्रुतेः । आदि कारणम् । जगतोऽभिन्ननिमित्तोपादानत्वात् । यतो वा इमानि भूतानि जातानीतिश्रुतेः ।
भागवते स्थित्युद्भवप्रलयहेतुरहेतुरस्य यत्स्वप्नजागरणसुषुप्तिषु सदहिश्च- देहेन्द्रियासु हृदयानि चरन्ति येन संजीवितानि तदवेहि परं नरेन्द्र ॥
इति भागवतोक्तेः । यस्य अक्तिश्च नौरिब संसारतारिका । एतादृशः परमेश्वरो मामवतु । स्वयमाद्यन्तरहितं प्रशान्तं ब्रह्मकारणमिति श्रुतेः तथा च सृष्ट्यादौ तदेव मूलकारणमस्ति । सदेव सोम्येदमिदर्भग्र आसीदिति श्रुतेः । अन्ते च स एव परमेश्वर: शिष्यते सर्वाधिष्ठानभूतत्वात् । आसंसारादा प्रलयाद्वेदेषु शास्त्रेषु स एव गीयते, योऽयं कालस्तस्यापि महाकालोऽयं परमेश्वरः ।स कालजन्यकष्टेभ्यो दुःखेभ्यश्च मां रक्षतु । कर्मणा जायते जन्तुः कर्मणैव प्रलीयते । अतो मम कर्तृत्वभोक्तृत्वरूपसंसारं शामाऽसिमा छिन्छ । स्वांशभूतं मां स्वस्वरूपलीनं कुरु । कर्मफलं दुष्कर्माणि च मे तथा प्रभवशात्संसारे राधमागधनचक शीधरपसारय । कामादिदोषान् निरस्य कामक्रोधादिवेगं नाशय । दिव्य-गुणादिभ्योऽपि थे घरी स्थिति संपादय । यो हि रामः स एव स्वात्मा यश्च स्वात्या, स एव राम इत्यभेद-युक्त्या में हदये जीवेश्वरयोरभेदज्ञानं जनयतु । बहौव तेज: ब्राह्मास्कारावृत्तिरपि ब्रह्याकारप्रविष्टत्वेन ब्रह्मरूपा इत्यभेदयुक्त्या जीवबाणोरभेदो मे मनसि सततं भवेत् एवं ब्रह्माकारवृत्या ब्रह्मानन्दरसानुभवं कुर्यामिति कृपां कुरु ।
उक्तं च वासिष्ठे-
यस्मिन् सर्वं यत: सर्व यः सर्व सर्वतश्च यः ।
यश्च सर्वपयो नित्यमात्मानं विद्धितं परम् ।
.
जिसका आदि नहीं होता वह अनादि कहलाता है । ब्रह्म अनादि है, क्योंकि उसका कोई कारण नहीं । श्रुति में यह ही कहा है कि न उसका कोई कार्य है और न उसका कोई कारण है । ब्रह्म जगत् का अभिन्न निमित्तोपादान कारण है अतः वह आदि कहलाता है । क्योंकि “यतो वा इमानिभूता जायन्ते” इति श्रुति से ब्रह्म जगत् का कारण सिद्ध होता है ।
.
यद्यपि ब्रह्म आदि, अन्त, मध्य से रहित है ऐसा श्रुति कहती है फिर भी सृष्टि के आदि में वह ब्रह्म ही था । सदेव सोभ्येदभिदमग्न आसित्, इस श्रुति से उसको आदि कहते हैं । सबका अधिष्ठान होने से सबके अन्त में भी वह ही शेष रहता है, अतः वह अन्त भी कहलाता है । संसार के आरम्भ से प्रलय-पर्यन्त वेद और शास्त्रों में उसीका गुण गाया जाता है ।
.
भगवान् काल का भी काल है, वह महाकाल भगवान् मुझे कालजन्य कष्टों से बचावें । कर्म करके कर्मफल भोगने के कारण जीव कर्म का कर्ता और फल का भोक्ता कहलाता है । अतः मेरा कर्तृत्व भोक्तृत्व रूप संसार और बार-बार संसार में आवागमन इन सबको ज्ञान के द्वारा मिटा दो ।
.
यह जीव आपका ही अंश है, अतः अपने अंश को अंशी में मिला दो । काम क्रोधादि दोषों को मिटाकर तज्जन्य वेग से मेरी रक्षा करो, दैवी गुणों से भी परे जो निर्गुण स्थिति है उमें मुझे पहुँचा दो । राम ही आत्मा है और आत्मा ही राम है, ऐसी अभेद बोधक युक्तियों से मेरे हृदय में जीव ईश्वर का अभेद ज्ञान पैदा कर दो ।
.
ब्रह्म ही तेज है और उसकी जो ब्रह्माकारावृत्ति है वह भी ब्रह्मरूप ही है क्योंकि वृत्ति में ब्रह्म प्रविष्ट है । ऐसी अभेद बोधक युक्तियों से मेरे मन से अभेद ज्ञान को पैदा करें । ब्रह्माकार वृत्ति से सदा ब्रह्मानन्द रस का पान रूपी क्रीडा करता रहूं । ऐसी कृपा आप मेरे ऊपर कीजिये ।
.
योगवासिष्ठ में कहा है कि –
हे राम ! जिससे यह सारा संसार उत्पन्न होता है, जिससे संपूर्ण जगत् स्थित रहता है, जो संपूर्ण जगद्रूप है, जो सब ओर विद्यमान है और जो सर्वमय है, उसीको नित्य परमात्मा समझो ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें