शनिवार, 7 जनवरी 2023

त्याग के बिना ईश्वर नहीं मिलते

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*करणहार कर्त्ता पुरुष, हमको कैसी चिंत ।*
*सब काहू की करत है, सो दादू का दादू मिंत ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विश्वास का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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"दक्षिणेश्वर में बैठकर हाजरा जप करता था और उसी के भीतर से दलाली की भी कोशिश करता था । घर में कुछ हजार रुपया कर्ज था - उस कर्ज के अदा करने की फिक्र में था । भोजन पकानेवाले ब्राह्मणों के सम्बन्ध में उसने कहा था, 'इस तरह के आदमियों से क्या हम कभी बातचीत करते हैं ?'
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"बात यह है कि थोड़ी भी कामना के रहते ईश्वर को कोई पा नहीं सकता । धर्म की गति सूक्ष्म है । सुई के छेद में सूत डाल रहे हो, परन्तु अगर जरा भी सूत उकसा हुआ हो तो छेद के भीतर कदापि नहीं जा सकता ।
"तीस साल तक लोग माला फेरते रहते हैं, फिर भी कुछ नहीं होता – क्यों ?
“विषैला घाव होने पर कण्डे की आग से सेंका जाता हैं । साधारण दवा से आराम नहीं होता ।
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“कामना के रहते हुए चाहे जितनी साधना करो, सिद्धि नहीं मिल सकती । परन्तु एक बात है, ईश्वर की कृपा होने पर, उनकी दया होने पर क्षण भर में सिद्धि मिलती है; जैसे हजार साल का अन्धेरा कमरा - एकाएक अगर कोई दिया ले जाता है तो क्षण भर में प्रकाशित हो जाता है ।
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“जैसे गरीब का लड़का बड़े आदमी की दृष्टि में पड़ गया हो; उसके साथ उसने अपनी लड़की का विवाह कर दिया । एक साथ ही गाड़ी-घोड़े, दास-दासी, माल-असबाब, घर-द्वार, सब कुछ हो गया ।"
एक भक्त - महाराज, कृपा किस तरह होती है ?
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श्रीरामकृष्ण - ईश्वर बालस्वभाव हैं, जैसे कोई लड़का अपनी धोती के पल्ले में रत्न भरे बैठा हो । कितने ही आदमी रास्ते से चले जा रहे हैं । उससे बहुतेरे रत्न माँग रहे हैं, परन्तु वह कपड़े में हाथ डाले हुए कहता है, 'नहीं, मैं न दूँगा ।' पर किसी एक ने चाहा ही नहीं, अपने रास्ते चला जा रहा है । उसके पीछे दौड़कर उसने उसकी स्वयं खुशामद करके उसे रत्न दे दिये ।
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"त्याग के बिना ईश्वर नहीं मिलते ।
"मेरी बात कौन लेता है ? मैं आदमी खोज रहा हूँ, - अपने भाव का आदमी । जिसे अच्छा भक्त देखता हूँ, उसके लिए सोचता हूँ कि वह शायद मेरा भाव ले सके । फिर देखता हूँ, वह एक दूसरे ढँग का हो जाता है ।
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"एक भूत अपना साथी खोज रहा था । शनिवार या मंगल को अपघात मृत्यु होने पर भूत होता है । भूत जब कभी देखता था कि शनिवार या मंगल को उसी तरह किसी की मृत्यु होनेवाली है तब उसके पास दौड़ जाता था । सोचता था, अब मुझे एक साथी मिला । परन्तु वह उसके पास गया नहीं कि वह आदमी उठकर बैठ जाता था । छत से गिरकर कोई बेहोश हुआ भी किसी तरह होश में आ जाता था ।
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"मथुरबाबू को भावावेश हुआ । वे सदा मतवाले की तरह रहते थे - कोई काम न कर सकते थे । तब लोग कहने लगे, ‘इस तरह रहोगे तो जायदाद कौन सम्हालेगा ? छोटे भट्टाचार्य (श्रीरामकृष्ण) ने ही कोई यन्त्र-मन्त्र किया होगा ।'
(क्रमशः)

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