मंगलवार, 3 जनवरी 2023

*श्री रज्जबवाणी पद ~ ९८*

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*प्रीति न उपजै विरह बिन, प्रेम भक्ति क्यों होइ ।*
*सब झूठै दादू भाव बिन, कोटि करे जे कोइ ॥*
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग टोडी । (गायन दिन ६ से १२)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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९८ भाव विशेषता । धीमाताल
भाव मिले भगवन्त हिं आय, 
नेह बिना कोउ नाहिं उपाय ॥टेक॥
प्रथम भाव भक्ति का मूल, 
सुकृत सब डाली फल फूल ॥१॥
भाव चढै भव सागर पार, 
जैसे नाव हिं नीर विचार ॥२॥
ज्यों पंखों परि अनल आकाश, 
त्यों भाव हिं चढि चरण निवास ॥३॥
जन रज्जब जगपति की आण१,
प्राण पुरुष को भाव विमाण ॥४॥१५॥
प्रेम की विशेषता बता रहे हैं -
✦ भाव से प्रभु हृदय में आकर मिलते हैं, प्रभु से मिलने का भाव बिना और कोई भी उपाय नहीं है ।
✦ पहले भक्ति का मूल भी भाव ही है अर्थात भाव से ही भक्ति होती है । अन्य सब सुकृत तो डाली, फूल, और फल के समान हैं ।
✦ जैसे जल के सागर को नाव पर चढ कर पार करने का विचार करते हैं वैसे ही भाव द्वारा संसार सागर को पार किया जाता है ।
✦ जैसे पंखों पे स्थित होकर अनल पक्षी आकाश में बसता है, वैसे ही भाव द्वारा प्रभु के चरणों मे निवास होता है ।
✦ हम जगतपति प्रभु की शपथ१ करके कहते हैं - प्राणधारी पुरुष को प्रभु के पास ले जाने के लिये भाव ही विमान है ।
(क्रमशः)

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