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*दादू जबही राम बिसारिये, तब ही झंपै काल ।*
*सिर ऊपर करवत बहै, आइ पड़ै जम जाल ॥*
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*संत टीला पदावली*
*संपादक ~ ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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हाइ हाइ रे जीव१ क्या कीया ।
साहिबजी का नांव न लिया ॥टेक॥
षाइ र सोवै सेवै नाहिं ।
मार पड़े तब कूकै कांइ२ ॥
सकल सबारि सौंज सब देइ ।
भजै नहीं तौ मारि र लेइ ॥
अबहीं चेति रहो३ हुसियार ।
टीला गुर दादू उपगार ॥१८॥
(पाठान्तर : १. जीव, २. काहिं. ३. रे हो)
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साहिब रूप परब्रह्म-परमात्मा का नामस्मरण न करके हाय रे हाय ! हे जीव ! तूने क्या कर डाला है । तू खाता है । खाकर सो जाता है किन्तु परमात्मा की सेवा रूप भक्ति नहीं करता है । जब यमराज के यहाँ भगवद्भजन न करने के कारण दण्ड मिलता है तब क्यों चिल्लाता-पुकारता है ।
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वह परब्रह्म-परमात्मा अकारण दयालु है । समस्त प्रकार की वस्तुओं-पदार्थों का निर्माण करके बिना किसी भेदभाव के सभी को देता है । यदि कोई उसका भजन-स्मरण नहीं करता है तो वह अपनी दी हुई वस्तुओं को राजी से न देने प र मारकर भी वापिस ले लेता है ।
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टीला कहता है, दादूजी गुरुमहाराज ने उपकार करने की भावना से भावित होकर हमें उपदेश दिया है । अतः अभी हमको सावधान हो जाना चाहिए तथा सदा-सर्वदा भगवद्भजन करने के लिए होशियार=चुस्त-दुरस्त रहना चाहिए ॥१८॥
(क्रमशः)
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