बुधवार, 1 फ़रवरी 2023

शब्दस्कन्ध ~ पद #२९०

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #२९०)*
*राग हुसेनी बंगाल ॥१७॥*
*(गायन समय पहर दिन चढ़े, चंद्रोदय ग्रन्थ के मतानुसार)*
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*२९०. विनय (त्रिताल)*
*तूँ घर आव सुलक्षण पीव ।*
*हिक तिल मुख दिखलावहु तेरा, क्या तरसावै जीव ॥टेक॥*
*निशदिन तेरा पंथ निहारूं, तूँ घर मेरे आव ।*
*हिरदा भीतर हेत सौं रे वाल्हा, तेरा मुख दिखलाव ॥१॥*
*वारी फेरी बलि गई रे, शोभित सोइ कपोल ।*
*दादू ऊपरि दया करीनें, सुनाइ सुहावे बोल ॥२॥*
इति राग हुसेनी बंगालौ समाप्त ॥१७॥पद २॥
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भा०दी०-शुभ लक्षणैः सुशोभित प्रियतम प्रभो ! मम हृदय-गुहागृहे पादार्पणं विधेहि । दर्शनं दास्यामीत्युक्त्वाऽदर्शनेन मदीयं मनः किमर्थं च दुःखी करोधि । व्यथिते न मनसा तव दर्शन-मार्ग पत्यामि कदा भगवान् दर्शनं दातुं पे गृहमागमिष्यसीति । दर्शनावसरं प्रती हे । हे परमात्मन् । मदीये स्वच्छे शुभे हदयगृहे समागत्य सुशोभनं सुन्दरकपोलं मुखं दर्शय । अहं शरीरादिक सर्वस्वं समर्पयामि । चरणारविन्दयोः प्रणिपत्य नमस्करोमि । तव प्रियं मधुरं वचनं श्रोतुमिच्छामि । तव वचनं मधुरं मनोहारि च । अतश्च श्रावय । हे सखे । त्वत्यदैकात्रय मां त्राहि त्राहि ।
उक्तं च दीनव-युस्तोत्रे
आकाररूपगुणयोग विवर्जितोऽपि भक्तानुकम्पन निमित्तग्रहीतपूर्ति ।
सर्वतोऽपि कृतशेष शरीरशप्यो दग्गोचरो भवतु मेऽद्य स दीनबन्धुः ॥
महामंडलेश्वर श्रीमदात्मारामस्वामिकृत भावार्थदीपिकायां हुसेनीबंगालराग: समाप्त: ॥१७॥
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हे शुभ लक्षणों से सुशोभित मेरे प्यारे प्रभो ! मेरे हृदय गुहारूपी घर में पधारिये । “दर्शन दूंगा” इतना कहकर फिर भी दर्शन न देकर आप मेरे मन को लालायित क्यों कर रहे हैं? व्यथित मन से मैं आपके दर्शनों के लिये रास्ता देख रहा हूं कि भगवान् कब दर्शन देने के लिये पधार रहे हैं । आपके दर्शन देने के अवसर की प्रतीक्षा कर रहा हूं । हे परमात्मन् ! मेरे स्वच्छ पवित्र हृदय में आकर शोभायुक्त सुन्दर गाल वाले मुख-कमल का दर्शन दीजिये ।
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अहो ! मैंने तन मन सब कुछ आपको समर्पित कर दिया है । चरणों में मस्तक झुका कर नमस्कार कर रहा हूं और आपके प्रिय मधुर वचनों को सुनना चाहता हूं । आपके वचन प्रिय तथा मन को हरण करने वाले हैं । अतः आप अपने वचन सुनाइये । हे मित्र ! मैं केवल तेरे चरणों का ही सहारा ले रहा हूँ । मेरी रक्षा करो और दर्शन देवो ।
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आलविन्दारस्तोत्र में –
भगवान् आकार रूप गुण से रहित होते हुए भी भक्तों के ऊपर दया करने के निमित्त अवतार धारण करते हैं और जो सर्वत्र विद्यमान रहते भी शेष नाग के शरीर की शय्या बनाये हुए हैं । वे दीनबन्धु भगवान् मेरे नेत्रों के समक्ष में प्रत्यक्ष प्रकट होकर दर्शन देने की कृपा करें ।
इति राग बंगालौ राग का पं. आत्मारामस्वामी कृत भाषानुवाद समाप्त ॥१७ ॥
(क्रमशः)

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