बुधवार, 8 फ़रवरी 2023

*गतजन्म में कर्म*

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*दादू यह परिख सराफी ऊपली, भीतर की यहु नाहिं ।*
*अन्तर की जानैं नहीं, तातैं खोटा खाहिं ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ भेष का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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श्रीरामकृष्ण एक दृष्टि से द्विज को देख रहे हैं ।
श्रीरामकृष्ण - अच्छा इतने लड़के हैं, उनमें यही आता है - यह क्यों ? कहो - पहले का कुछ जरूर रहा होगा ।
मास्टर - जी हाँ ।
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श्रीरामकृष्ण - संस्कार । गतजन्म में कर्म किया हुआ है । अन्तिम जन्म में मनुष्य सरल होता है । अन्तिम जन्म में पागलपन का भाव रहता है ।
"परन्तु है यह उनकी इच्छा । उनकी 'हाँ' से संसार के कुछ काम होते हैं और उनकी 'ना' से होनहार भी बन्द हो जाता है । इसीलिए तो आदमी को आशीर्वाद नहीं देना चाहिए ।
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"मनुष्य की इच्छा से कुछ नहीं होता । उन्हीं की इच्छा से होता जाता है ।
"उस दिन मैं कप्तान के यहाँ गया था । देखा, रास्ते से कुछ लड़के जा रहे थे । वे सब एक खास तरह के थे । एक लड़के को मैंने देखा, उन्नीस या बीस साल की उम्र रही होगी, बाल सँवारे हुए था, सीटी बजाता हुआ चला जा रहा था ।
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कोई 'नगेन्द्र - क्षीरोद' कहता हुआ जा रहा था । देखा, कोई तमोगुण में पड़ा हुआ है, बाँसुरी बजा रहा है, उसी के कारण कुछ अहंकार हो गया है । (द्विज से) जिसे ज्ञान हो गया है, उसे निन्दा की क्या परवाह है ? उसकी बुद्धि कूटस्थ है - लौहार की निहाई जैसे, उस पर कितनी ही चोट पड़ चुकी, परन्तु उसका कहीं कुछ नहीं बिगड़ा ।
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"मैंने (अमुक के) बाप को देखा, रास्ते से चला जा रहा था ।"
मास्टर - बड़ा सरल आदमी है ।
श्रीरामकृष्ण - परन्तु आँखें लाल रहती हैं ।
श्रीरामकृष्ण कप्तान के यहाँ गये हुए थे । वहीं की बातें कर रहे हैं । जो लड़के श्रीरामकृष्ण के पास आते हैं, कप्तान ने उनकी निन्दा की थी । हाजरा महाशय ने कप्तान के पास उनकी निन्दा की होगी ।
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श्रीरामकृष्ण - कप्तान से बातें हो रही थीं । मैंने कहा, पुरुष और प्रकृति के सिवा और कुछ भी नहीं है । नारद ने कहा था, 'हे राम, जितने पुरुष देखते हो सब में तुम्हारा अंश है, और जितनी स्त्रियाँ देखते हो सब में सीता का अंश है ।’
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"कप्तान को बड़ी प्रसन्नता हुई । उसने कहा, ‘आप ही को यथार्थ बोध हुआ है । सब पुरुष राम के अंश से हुए अतएव राम हैं और सब स्त्रियाँ सीता के अंश से हुई अतएव सीता हैं । फिर थोड़ी ही देर में वह लड़कों की निन्दा करने लगा ।
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कहा, 'वे लोग अंग्रेजी पढ़ते हैं, जो पाते हैं वहीं खाते हैं, - वे लोग आपके पास सर्वदा जाते हैं, यह अच्छा नहीं । इससे आप पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है । हाजरा ही एक सच्चा आदमी है । लड़को को अपने पास अधिक आने-जाने न दिया कीजिये । पहले तो मैंने कहा, 'आते हैं - मैं क्या कहूँ ?’
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"फिर मैंने उसे खूब सुनाया । उसकी लड़की हँसने लगी । मैंने कहा, 'जिसमें विषय-बुद्धि है, उससे ईश्वर बहुत दूर हैं । विषय-बुद्धि अगर न रही तो ईश्वर उस आदमी की मुट्ठी में हैं - बहुत निकट हैं ।' कप्तान ने राखाल की बात पर कहा, 'वह सब के यहाँ खाता है ।' हाजरा से उसने सुना होगा ।
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तब मैंने कहा, 'कोई चाहे लाख जप-तप करे, यदि उसमें विषय-बुद्धि है तो कहीं कुछ न होगा, और शूकर-मांस खाने पर भी अगर किसी का मन ईश्वर पर है तो वह मनुष्य धन्य है । क्रमशः ईश्वर की प्राप्ति उसे होगी ही । हाजरा इतना जप-तप करता है परन्तु भीतर दलाली करने की फिक्र में रहता है ।
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"तब कप्तान ने कहा, 'हाँ, यह बात तो ठीक है ।' मैंने कहा, 'अभी अभी तो तुमने कहा, - सब पुरुष राम के अंश से हुए अतएव राम हैं, और सब स्त्रियाँ सीता के अंश से हुई अतएव सीता हैं, इस तरह कहकर अब ऐसी बात कह रहे हो ?
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"कप्तान ने कहा, 'हाँ ठीक है - मगर आप भी तो सब को प्यार नहीं करते ।’
"मैंने कहा, 'आपो नारायण - सभी जल है, परन्तु कोई जल पिया जाता है, किसी से बरतन धोये जाते हैं, कोई शौच के काम आता है । यह जो तुम्हारी बीबी और लड़की बैठी हुई देख रहा हूँ, ये साक्षात् आनन्दमयी हैं ।’ कप्तान कहने लगा, ‘हाँ हाँ, यह ठीक है ।' तब मेरे पैर पकड़ने के लिए हाथ बढ़ाने लगा ।"
यह कहकर श्रीरामकृष्ण हँसने लगे । अब श्रीरामकृष्ण कप्तान के गुणों की बात कह रहे हैं ।
(क्रमशः)

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