🌷🙏 🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 卐 *सत्यराम सा* 卐 🙏🌷
🌷🙏 *#श्री०रज्जबवाणी* 🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*मन ही मंजन कीजिये, दादू दरपण देह ।*
*मांहैं मूरति देखिये, इहि औसर कर लेह ॥*
===================
*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
राग गुंड(गौंड) ६ (गायन समय - वर्षा ॠतु सब समय)
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
११२ मन से व्यवहार । धीमा ताल
मन चाल्यों पीछे कछु नांहिं, ऐसे समझ देखि मन मांहि ॥टेक॥
मन दीपक देही तैं जाय, तब ही तिमिर भरे घर आय ॥१॥
मन अक्षर देही लग१ जाणि, मिथ्या लग अक्षर सु बुझाणी२ ॥२॥
मन प्राणी त्यागे तन अंग३, तब रज्जब मृतक सु प्रसंग ॥३॥६॥
मन से ही व्यवहार होता है, यह कह रहे हैं -
✦ मन के चले जाने पर पीछे कुछ भी नहीं रहता, ऐसा ही है, यह मन में विचार करके देख सकते हो ।
✦ जैसे घर से दीपक चला जाता है तब घर में अंधेरा आ भरता है । वैसे ही जब मन शरीर से चला जाता है तब शरीर में अंधेरा हो जाता है ।
✦ मन अक्षर है और शरीर मात्रा१ है, जैसै मात्रा अक्षर से ही समझ२ आती है ।
✦ वैसे ही शरीर मन से ही समझ में आता है, मन रूप प्राणी प्यारे३ शरीर को त्याग देता है तब शरीर मृतक होने का प्रसंग आ जाता है ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें