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*अमर ठौर अविनाशी आसन,*
*तहाँ निरंजन लाग रहे ।*
*दादू जोगी जुग जुग जीवै,*
*काल ब्याल सब सहज गये ॥*
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*संत टीला पदावली*
*संपादक ~ ब्रजेन्द्र कुमार सिंहल*
*साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी*
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राग गौड़ी ॥४॥
रांम कहौ कलि बहू क्यूं आवै ।
मारि काल संगि घेरि चलावै ॥टेक॥
माता पिता कहैं यहु मेरा ।
छिन माहैं जम किया नवेरा ॥
नारी सुत सजन मिली आयौ ।
बांधि लियौ जिव कहीं न छुड़ायौ ॥
देषै गांव सकल ही ठाढौ ।
सोइ सूर जे आवै आडौ ॥
टीला कोई छूटै नहीं२ ।
जे उबरै तौ देषौ कहीं३ ॥२३॥
(पाठान्तर : १. क्यौं, २. नांहीं, ३. कांहीं)
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जो राम नाम का स्मरण करता है, वह पुनः जन्म लेकर संसार में क्यों आएगा ? अथवा रामनाम-स्मरण के प्रभाव से साधक स्वस्वरुपस्थ हो जाता है । परिणामतः उसका आवागमन का चक्र मिट जाता है । इसके विपरीत जो राम-नाम का स्मरण नहीं करते उनको काल=यमराज के दूत मारकर सबके देखते-देखते ही घेर-घार कर संग में ले जाते हैं । ॥टेक॥
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माता-पिता कहते हैं, अरे ! इसको अपने साथ मत ले जाओ । यह हमारा सहारा है, हमारा है किन्तु यम क्षणमात्र में ही निवेरा=निपटारा कर देता है । नारी, पुत्र, स्वजन सभु मिलकर यमदूतों के समक्ष आकर न मारने की प्रार्थना करते हैं किन्तु यमदूत तो उसको(जीव को) बाँध चुके होते हैं । इनसे उस जीव को छुड़ा पाना असम्भव हो जाता है, कोई भी जीव को छुड़ा नहीं पाता ।
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सारा गाँव भी खड़ा-खड़ा देखता रह जाता है, कुछ भी कर नहीं पाता । इस समय जो शूरवीर होता है वही काम आता है । ऐसा शूरवीर राम-नाम का स्मरण है और वही यमदूतों से छुड़ा पाने में समर्थ हो पाता है । (देखें अजामिल प्रसंग) टीला कहता है, काल से कोई भी छूट नहीं पाता । जो उबरते हैं वे कोई विरले ही होते हैं ॥२३॥
(क्रमशः)
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